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अतीत की यादें ताजा कर आज भी सिहर जाते हैं विस्थापित कश्मीरी पंडित, बया किया दर्द Noida News

अतीत की यादें ताजा कर आज भी सिहर उठते हैं कश्मीरी

By Edited By: Published: Mon, 05 Aug 2019 08:05 PM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 08:32 PM (IST)
अतीत की यादें ताजा कर आज भी सिहर जाते हैं विस्थापित कश्मीरी पंडित, बया किया दर्द Noida News
अतीत की यादें ताजा कर आज भी सिहर जाते हैं विस्थापित कश्मीरी पंडित, बया किया दर्द Noida News

नोएडा, जेएनएन। झेलम का बहता पानी उस रात की हैवानियत का गवाह है, जिसने इंसानियत के दिल पर कभी ख्त्म न होने वाले दाग दिए हैं। गवाह है जमीं की जन्नत की आबोहवा जिसकी फिजाओं में आज भी आज भी सैकड़ों कश्मीरी हिंदू बेटियों की बेबस कराहें गूंजती हैं। 30 साल गुजर गए लेकिन आज भी वह काली रात हम भूले नहीं हैं। हमें फरमान सुनाया गया था कि जीना चाहते हो तो घाटी छोड़ दो। परिवार से ज्यादा कुछ नहीं होता, चुपचाप सब कुछ छोड़कर चले आए। हम करोड़पति थे, लेकिन एक रात में भिखारी बन गए।

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समय गुजरा और सपने भी धूमिल होते गए। किसी तरह परिवार तो संभाल लिया लेकिन जन्मभूमि आज भी पुकारती है। पांच साल पहले मोदी सरकार आई तो उम्मीदें फिर जवां हुईं। ऐतिहासिक फैसले से आस बंधी है। यह कहना है उन विस्थापित कश्मीरियों का जो लंबे समय से आज के दिन का इंतजार कर रहे थे। सोमवार को दैनिक जागरण ने जब उनका दर्द बांटा तो कुछ इस तरह उन्होंने अपने मन की बात कही।

बेटी की शादी थी और हमें छोड़ना पड़ा घर
मूलरूप से श्रीनगर के रैनावारी कस्बे के रहने वाले जानकी नाथ (89) अपनी पत्नी शीला (78) बेटे जयकिशन और बहू सरोज के साथ सेक्टर 34 के नीलगिरि वन अपार्टमेंट रहते हैं। जानकीनाथ अब कमजोर हो चुके हैं, लेकिन चेहरे पर श्रीनगर वापसी की उम्मीद अभी भी जवां है। शीला पुरानी यादें ताजा कर फफक पड़ती हैं। कहती हैं कि घर में बेटी की शादी की तैयारियां चल रही थीं। सजावट हो चुकी थी। अचानक फरमान हुआ कि घाटी छोड़ दो। एक पल में सब खत्म हो गया। 21 जनवरी 1990 हम वहां से सब छोड़ कर चले आए। पेट भर खाना तो कहीं भी मिल जाता है लेकिन अपने घर से बाहर रहने का दुख कभी कम नहीं हो सकता।

नरक हो गया था जीवन
श्रीनगर के ही बाल गार्डन के एमएल कौल (80) व आशा कौल (75) कहते हैं कि 1990 में कश्मीर के हालात बहुत खराब थे। क्रिकेट मैच में पाकिस्तान जीतता था तो हमारे घरों पर पत्थर बरसाए जाते थे। भारत जीतता तब हमें कश्मीर छोड़ने की धमकियों के साथ घरों व कारों के शीशे तोड़ दिए जाते थे। घर की महिलाओं के ऊपर तरह तरह के कमेंट होते थे। सही मायने में हमें से कह दिया गया था कि घाटी छोड़ दो। 9 सितंबर 1990 की रात हम सब कुछ छोड़कर चले आए। हम करोड़पति थे, लेकिन एक ही रात में भिखारी बन गए।

पिता की आंखें निकाल लीं, बहन के साथ किया दुष्कर्म
सेक्टर-34 में रहने वाले एक विस्थापित कश्मीरी का दर्द झकझोरने वाला है। एक बैंक में तैनात विस्थापित कश्मीरी ने बताया कि आतंकियों ने उनके पिता की आंखें निकाल लीं। बहन के साथ दुष्कर्म किया और पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया। 19 जनवरी 1990 का वह काला दिन कभी भूला नहीं जा सकता। सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। सभी को यही कहा जा रहा था कि या तो धर्म परिवर्तन कर लो, या कश्मीर छोड़ दो। सरकार के हाथों में सबकुछ होते हुए भी कोई कदम नहीं उठाया गया।

संयुक्त राष्ट्र का दखल खत्म हो
श्रीनगर के ही हब्बा कदल के मूल निवासी प्यारेलाल कहते हैं कि नेताओं ने कश्मीर की सुंदरता छीन ली। वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और जम्मू- कश्मीर के तत्लाकीन महाराजा हरी सिंह को पूरे विवाद की जड़ बताते हैं। प्यारेलाल कहते हैं कि नेहरू ज्यादा दोषी हैं, क्योंकि उन्होंने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजा था। केंद्र की मोदी सरकार अब इस मुद्दे पर भी काम करे। शादीलाल रैना कहते हैं कश्मीर में विस्थापितों की वापसी आसान नहीं है। वहां रोजगार के साधनों पर जोर देना होगा।

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