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Kargil War: आज भी शहर के लोग नहीं भूले हैं शहीद कैप्टन शशिकांत की वीरता की कहानियां

कारगिल युद्ध में करीब तीन घंटे तक चली गोलीबारी में पाकिस्तानी सेना के आगे कैप्टन शशिकांत शर्मा दीवार की तरह डटे रहे।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 10:53 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 10:53 AM (IST)
Kargil War: आज भी शहर के लोग नहीं भूले हैं  शहीद कैप्टन शशिकांत की वीरता की कहानियां
Kargil War: आज भी शहर के लोग नहीं भूले हैं शहीद कैप्टन शशिकांत की वीरता की कहानियां

नोएडा [पारुल रांझा]। कारगिल युद्ध में देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले अमर शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा की वीरता की कहानी शहर के लोग आज भी नहीं भूले हैं। इस वीर की शहादत पर शहरवासियों का आज भी नाज है। पांच अक्तूबर 1998 को शहीद हुए कैप्टन शशिकांत शर्मा बचपन से लेकर देश सेवा तक हमेशा अव्वल रहे।

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जिस तरह सियाचिन ग्लेशियर में तैनाती के दौरान उन्होंने बहादुरी का परिचय देते हुए दुश्मन के नापाक इरादों को सफल नहीं होने दिया। इसी तरह बचपन से लेकर नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) तक की पढ़ाई में कभी पीछे नहीं रहे। 2019 में 86 एनडीए कोर्स की रजत जयंती पर नेशनल डिफेंस एकेडमी पुणो में रीयूनियन के अवसर पर कैप्टन शशिकांत शर्मा के माता-पिता को सम्मान पत्र दिया गया। शहर के वीर सपूत को वीरता के लिए 1999 में मेडल दिया गया था।

मासूम पढ़ते हैं शहीद के बनाए नोट्स

शहीद कैप्टन के छोटे भाई डॉ. नरेश शर्मा बताते हैं कि हर दो साल बाद पिता की पोस्टिंग के चलते शहरों के साथ-साथ स्कूल बदलते रहे। हर स्कूल में बेहतर प्रदर्शन के लिए कैप्टन शशिकांत शर्मा को हमेशा सम्मानित किया जाता था। उन्होंने सातवीं व आठवीं कक्षा की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय एयर फोर्स स्टेशन हिंडन से की। इस दौरान उनके द्वारा लिखे गए नोट्स आज भी स्कूल में रखे गए हैं। उनकी इतिहास की अध्यापिका प्रतिभा दुलेकर उनसे काफी प्रभावित थीं। उनके नोट्स को सभी बच्चों को दिखाती थीं और इसी तरह के नोट्स बनाने के लिए बच्चों को प्रेरित भी करती थीं।

वहीं, उन्होंने सीबीएसई की 12वीं कक्षा में शत प्रतिशत अंकों के साथ टॉप किया था। उस दौरान प्रथम आने वाले शशिकांत शर्मा का गणित में एक नंबर काट दिया गया था। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सहज भाव के साथ जवाब देते हुए सीबीएसई में दोबारा कॉपी जांच कराने की मांग की। सच्चाई सामने आने पर उन्हें टॉपर बनाया गया।

आसानी से पूरा करते थे हर मुश्किल टास्क

कारगिल युद्ध में करीब तीन घंटे तक चली गोलीबारी में पाकिस्तानी सेना के आगे कैप्टन शशिकांत शर्मा दीवार की तरह डटे रहे। दुश्मनों से लड़ते हुए वह शहीद हुए। कर्नल किरण माकम और कर्नल एनके चक्रवर्ती के साथ उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) में प्रशिक्षण लिया था। कर्नल माकम और कर्नल चक्रवर्ती बताते हैं कि वे कभी भी मेहनत से पीछे नहीं हटते थे। हर मुश्किल टास्क को आसानी से कर लेते थे।

देश की लिए कुछ करने का जुनून ट्रेनिंग के दौरान साफ दिखता था। नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) की ट्रेनिंग ही हर एक फौजी को फौलाद बनाती है। पढ़ाई में अव्वल आने पर उन्हें टॉर्च मेडल भी मिला। बता दें कि शहर में हर साल उनके नाम पर एक बड़ा क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है। सेक्टर-37 में शहीद शशिकांत पार्क बनाया गया है। इसके साथ ही गिझौड़ में कैप्टन शशिकांत शर्मा प्राथमिक विद्यालय भी संचालित हो रहा है। सेक्टर-44 स्थित एमिटी स्कूल से होशियारपुर तक जाने वाली सड़क का नाम शहीद शशिकांत मार्ग है। 

शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा का परिचय

जन्म: 28 फरवरी, 1973

कमीशन: 10 जून, 1995

शहीद: 05 अक्तूबर, 1998

सम्मान: 1999 में सेना मेडल


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