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पैर खोने के बाद भी नहीं टूटे सपने, हौसलों के बल भर रहीं कामयाबी की उड़ान

लोरी फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में स्वर्ण रजत और कांस्य पदक मिलाकर कुल 80 पदक अपने नाम कर चुकी हैं।

By Neel RajputEdited By: Published: Sun, 15 Mar 2020 03:21 PM (IST)Updated: Sun, 15 Mar 2020 03:21 PM (IST)
पैर खोने के बाद भी नहीं टूटे सपने, हौसलों के बल भर रहीं कामयाबी की उड़ान
पैर खोने के बाद भी नहीं टूटे सपने, हौसलों के बल भर रहीं कामयाबी की उड़ान

नोएडा [सुनाक्षी गुप्ता]। एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जानें के बाद दूसरा सपना देखने के हौसले र्को जिंदगी कहते है। कुछ ऐसी ही दास्तां हैं सेक्टर 10 निवासी लोरी कुमारी की। लोरी कराटे की बेहतरीन खिलाड़ी हैं। वे जब तीन वर्ष की थीं तभी से कराटे का प्रशिक्षण लेने लगी थीं। लेकिन पिछले साल एक सड़क दुर्घटना में उन्होंने अपना एक पैर खो दिया। आमतौर पर इस तरह की घटना के बाद लोग टूट जाते हैं और्र जिंदगी से निराश हो जाते हैं, लेकिन लोरी न तो टूटीं और न ही निराश हुईं, बल्कि पूरी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ती रहीं। वह खुद नोएडा स्टेडियम में तीरंदाीज सीख रही हैं साथ ही छोटे बच्चों को कराटे का प्रशिक्षण भी देती हैं। कह सकते हैं कि लोरी उन खिलाड़ियों के लिए मिसाल हैं जो किसी तरह की दुर्घटना का शिकार होने पर हिम्मत खो देते हैं।

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राष्ट्रीय स्तर पर जीत चुकी हैं कई पदक

लोरी फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक मिलाकर कुल 80 पदक अपने नाम कर चुकी हैं। ये सारे पदक उन्होंने राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में हासिल किए हैं। वह साल 2016 में आयोजित 16वीं शीतो - रियो स्पोर्ट्स कराटे चैंपियनशिप में उत्तर प्रदेश की टीम से खेलते हुए स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं, इसके अलावा 2011 में आयोजित यूपी स्टेट कराटे चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक चमका चुकी हैं। इसी प्रकार कई कीर्तिमान अपने नाम कर अन्य खिलाड़ियों के लिए मिसाल बन गई हैं।

आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए बचपन से ही करने लगी थीं काम

कक्षा 11वीं में पढ़ने वाली लोरी के हौसले कितने बुलंद हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि वह बचपन से ही खिलाड़ी बनने के साथ ही घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए काम भी करती रही हैं। उनके पिता पहले खाने का ठेला लगाते थे, हालांकि अब एक निजी कंपनी में काम करने लगे हैं। इसलिए कराटे में ब्लैक बेल्ट हासिल करने के बाद लोरी दूसरे बच्चों को प्रशिक्षण देने का काम भी करने लगीं।

दुर्घटना में पैर खोने के बाद लोरी की हिम्मत भी थोड़ी टूटी लेकिन शहर की एक संस्था द्वारा आर्थिक मदद मिलने पर उन्होंने नकली पैर लगवाया और एक बार फिर अपना सफर शुरू किया। आज वह अपनी प्रतिभा से न केवल माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं, बल्कि परिवार में आर्थिक मदद भी कर रही हैं। यही वजह है कि उनके पिता भ्रम शंकर और माता नीलम देवी अपनी बेटी पर नाज करते है।


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