परंपरागत खेती से हटे ग्रेटर नोएडा के किसान, अब जीवन को महका रही फूलों की खेती
किसान आमतौर पर परंपरागत खेती को ही तवज्जो देते हैं। गेहूं चावल दलहन आदि की खेती होती है लेकिन इनसे आर्थिक रूप से अधिक फायदा नहीं हो रहा। इसलिए किसानों ने अब फूलों की खेती चुनी।
ग्रेटर नोएडा, अरविंद। फूलों की खेती किसानों के जीवन को महका रही है। खेतों में अनाज की जगह अब फूल लेते जा रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में फूलों की जबरदस्त मांग ने परंपरागत खेती की सोच को बदल दिया है। अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों ने परंपरागत खेती को छोड़कर फूलों को अपना लिया है। लॉकडाउन में किसानों को इसका खासतौर पर फायदा मिला। दूसरे प्रदेश एवं जिलों से फूलों की आपूर्ति बंद हो गई। किसानों को फूलों की मनमानी कीमत मिली। मांग को देखते हुए किसान फूलों की प्रजाति का चयन कर रहे हैं।
परंपरागत खेती से हटने से हुआ फायदा
किसान आमतौर पर परंपरागत खेती को ही तवज्जो देते हैं। गेहूं, चावल, दलहन आदि की खेती होती है, लेकिन इन फसलों के उत्पादन से किसानों को आर्थिक रूप से अधिक फायदा नहीं हो रहा है। इसलिए किसानों ने फूलों की खेती को चुना। दिल्ली एनसीआर में फूलों की जबरदस्त मांग है। पूजा स्थलों से लेकर कार्यक्रमों में सजावट के लिए फूलों का जमकर उपयोग हो रहा है।
फूलों की मांग में तेजी से इजाफा
इससे फूलों की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है। दिल्ली से करीब होने के कारण फूलों को अधिक समय तक ताजा रखने का झंझट भी नहीं है। रबूपुरा व आस पास के इलाके में किसान बड़े पैमाने पर गेंदा, चमेली आदि के फूलों की खेती कर रहे हैं। मुनाफा अधिक देखते हुए आस पास के किसान भी इसे तेजी से अपना रहे हैं।
परंपरागत खेती में उत्पादन लागत व अधिक देखभाल की जरूरत
लॉकडाउन में किसानों ने गेंदे को ढाई सौ रुपये प्रति किलो तक बिक्री की है। चमेली की फूलों की भी काफी अधिक मांग है। किसान हरि सिंह का कहना है कि परंपरागत खेती में अब अधिक मुनाफा नहीं है। उत्पादन लागत व अधिक देखभाल की जरूरत पड़ती है। जबकि फूलों की खेती में मुनाफा अधिक है। इसलिए किसानों का रुझान इस ओर बढ़ा है।
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