उत्तम क्षमा धर्म के साथ शुरू हुआ 10 दिवसीय पर्युषण पर्व, सीमित समय के लिए श्रद्धालुओं को मिला प्रवेश
शहर के जैन मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं अभिषेक के लिए पहुंचने लगे थे। शांतिधारा के बाद पूजन किया गया। मंदिरों में सीमित समय के लिए ही श्रद्धालुओं को प्रवेश दिया गया।
नोएडा [पारुल रांझा]। दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण महापर्व रविवार से शुरू हो गए हैं। 10 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व के पहले दिन श्रद्धालुओं ने उत्तम क्षमा धर्म की पूजा की। हालांकि, कोरोना के चलते इस बार कोई भी सामूहिक आयोजन नहीं किया गया। शहर के जैन मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं अभिषेक के लिए पहुंचने लगे थे। शांतिधारा के बाद पूजन किया गया। मंदिरों में सीमित समय के लिए ही श्रद्धालुओं को प्रवेश दिया गया। श्रद्धालुओं को धार्मिक अनुष्ठान व व्रत घर पर ही रहकर करने को कहा गया था।
सीमित समय के लिए श्रद्धालुओं को मिला प्रवेश
सेक्टर-27 स्थित जैन मंदिर में पूजन करने के श्रद्धालुओं का सुबह से ही आवागमन शुरू हो गया। यहां दूर-दराज से भी श्रद्धालु पहुंचे। मंदिर में उत्तम क्षमा व्रत पर विस्तार से चर्चा की गई। मंदिर समिति के प्रबंधक सुबोध जैन ने बताया कि धर्म के 10 लक्षणों का पालन करने की शिक्षा देने वाले इस पर्व का रविवार को पहला दिन था। सीमित समय के लिए ही श्रद्धालुओं को आने की अनुमति थी। उत्तम क्षमा धर्म में हम उनसे क्षमा मांगते हैं, जिनके साथ हमारे मतभेद हों और उन्हें क्षमा करते हैं, जिन्होंने हमारे साथ गलत व्यवहार किया हो। उन्होंने बताया कि शासन से जारी निर्देशों का पालन करते मंदिर में शारीरिक दूरी का पालन किया गया। पर्व के दस दिनों तक श्रावक अपने-अपने संकल्प लेकर व्रत उपवास रखेंगे। हर दिन भगवान का अभिषेक व शाम को आरती होगी।
पर्युषण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म
सेक्टर-50 स्थित जैन मंदिर में श्रीजी का अभिषेक, शांतिधारा, नित्य नियम पूजा, विधान पूजन के कार्यक्रम हुए। शाम को आरती की गई। दर्शन के बाद व जाने से पूर्व एक बार ही सूखी सामग्री आगे रखी टेबल पर चढ़ाई गई। मंदिर में परिसर में शारीरिक दूरी का पालन करने के लिए घेरे बनाए गए थे। किसी को भी परिसर में बैठकर पूजा करने की अनुमति नहीं मिली। एक समय में दो व्यक्तियों को ही भगवान का अभिषेक और शांतिधारा कर का अवसर मिला। समिति के संरक्षक दिनेश जैन ने बताया कि दशलक्षण महापर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म मनाया जाएगा। क्षमा के समान मार्दव की आत्मा का स्वभाव है। मार्दव धर्म कहता है कि अहंकार, मान को त्यागकर विनय भाव धारण करें। विनय के बिना परमात्मा को नहीं पाया जा सकता।
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