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ट्रॉमा सेंटर न होने से माह में 100 से अधिक मरीजों को भेजा जा रहा दिल्ली

गौतमबुद्धनगर को एक्सीडेंटल ट्रॉमा की सुविधा उपलब्ध नहीं है, जबकि शहर में हर माह औसत 100 गंभीर इंजर्ड मरीजों को एक्सीडेंटल ट्रॉमा सेंटर की जरूरत होती है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 05:30 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 05:30 PM (IST)
ट्रॉमा सेंटर न होने से माह में 100 से अधिक मरीजों को भेजा जा रहा दिल्ली
ट्रॉमा सेंटर न होने से माह में 100 से अधिक मरीजों को भेजा जा रहा दिल्ली

मोहम्मद बिलाल, नोएडा : गौतमबुद्धनगर को एक्सीडेंटल ट्रॉमा की सुविधा उपलब्ध नहीं है, जबकि शहर में हर माह औसत 100 गंभीर इंजर्ड मरीजों को एक्सीडेंटल ट्रॉमा सेंटर की जरूरत होती है। ऐसे में मरीज को दिल्ली या निजी अस्पताल रेफर किया जाता है। डॉक्टरों का मानना है कि एक्सीडेंटल ट्रॉमा न होने के चलते लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। जबकि सरकारी आकड़ों के अनुसार जिल में हर साल 1 हजार से भी अधिक सड़क हादसों के मामले सामने आते है। जिनमें 350 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। बीते सोमवार को भी हरौला में हुए सड़क हादसे में बुरी तरह से घायल 3 लोगों को दिल्ली भेजना पड़ा था।

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अभी तक सड़क हादसों में गंभीर रूप से घायल लोगों को जिला अस्पताल में लाया जाता है। लेकिन अस्पताल में सेंटर ट्रॉमा जैसी सुविधाएं न होना मरीजों की जान पर भारी पड़ रहा है। अस्पताल में सीटी स्कैन, आईसीयू और बर्न यूनिट, एमआरआई की सुविधा नहीं हैं। हादसे में घायल किसी को अगर सिर की गंभीर चोट लग जाती है तो उसके उपचार के लिए सबसे जरूरी सीटी स्कैन मशीन तक नहीं है। जबकि गंभीर रूप से घायल और बीमार गरीब मरीज महंगे निजी अस्पताल जाने को मजबूर हो रहे हैं। आईसीयू की कमी भी मरीजों के इलाज में सबसे बड़ी बाधा है। वर्तमान में बर्न ट्रामा यूनिट और आईसीयू की सुविधा सिर्फ शहर के निजी अस्पतालों में दी जा रही है।

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क्या है ट्रॉमा

किसी भी तरह की दुर्घटना का सामना करने के बाद अक्सर लोग बदहवास से हो जाते हैं। वो न कुछ बोल पाते हैं और ही कोई रिएक्ट कर पाते हैं। इस तरह के ट्रॉमा का शिकार सबसे ज्यादा वो लोग होते हैं जो किसी भयानक सड़क दुर्घटना के शिकार होते हैं। अगर ये दुर्घटना आमने-सामने के टक्कर जैसी हो तो इसमें व्यक्ति काफी गहरे ट्रॉमा में जा सकता है। एक्सीडेंट में क्या हुआ उसे कुछ भी याद नहीं रहता। ऐसी दुर्घटनाओं में होने वाला ट्रॉमा लंबे समय तक उस इंसान के दिमाग पर हावी रहता है और उसे सामान्य होने में काफी दिक्कत होती है।

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घायलों के लिए जरूरी है ट्रॉमा का इलाज

जितना जरूरी घायल को हॉस्पिटल पहुंचाना और ट्रीटमेंट देना है, उतना ही जरूरी इस तरह के ट्रॉमा से निपटना होता है। ट्रॉमा का शिकार हुए व्यक्ति को जल्द से जल्द मेडिकल हेल्प की जरूरत होती है। उसे जल्द से जल्द फ‌र्स्ट एड मिलनी चाहिए। इसके बाद अस्पताल में उसकी चोट का इलाज करने के बाद उसके ट्रॉमा को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।

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ट्रॉमा सेंटर में होती है इस तरह की सुविधाएं

- 24 घंटे इमरजेंसी

- टॉप सर्जन और फिजिशियन

- इमरजेंसी उपकरणों

- हाई डिपेंडेंसी यूनिट

- लाइफ से¨वग उपकरण

- सुपर स्पेशलिटी फैसलिटी

- रिहैबिटेशन के लिए ऑक्यूपेशनल थेरेपी

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बीते सालों में सड़क दुर्घटना के आंकड़े

सड़क दुर्घटना की संख्या

2011 2012 2013 2014 2015

789 768 955 892 845

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सड़क दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या

2011 2012 2013 2014 2015

3014 349 386 347 325

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सड़क दुर्घटना में घायलों की संख्या

2011 2012 2013 2014 2015

552 539 684 675 630

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प्रमुख दुर्घटना स्थल

- डीएनडी रोड

- यमुना हाइवे-135

- सेक्टर-94 हाजीपुर अंडरपास

- सेक्टर-44 एमिटी स्कूल के पास

- सेक्टर-93 एल्डिको कट

- सेक्टर-91 पंचशील स्कूल

- परी चौक

- यमुना एक्सप्रेस-वे

- सेक्टर-125 एमिटी यूनिवर्सिटी

- एडवेंट बि¨ल्डग

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जिला अस्पताल में सड़क हादसों में घायल मरीजों के लिए वैसे तो सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। कुछ गंभीर ऐक्सीडेंटल केस में मरीज को दिल्ली रेफर करना ही पड़ता है। लेकिन सेक्टर-39 स्थित निर्माणधीन अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर की सुविधा भी मिलेगी।

डॉ.अनुराग भार्गव, सीएमओ, गौतमबुद्धनगर


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