स्वास्थ्य विभाग की नाकामी से अस्पताल के बाहर गुजारनी पड़ी रात
स्वास्थ्य विभाग की नाकामी ही कहेंगे कि एक बेटे को बीमार मां के साथ अस्पताल के बाहर रात गुजारनी पड़ी। वह अस्पताल से मां के इलाज की गुहार लगाते रहा। इमरजेंसी में बैठे स्वास्थ्य कर्मियों का दिल नहीं पसीजा। दवाई देकर दूसरे दिन ओपीडी में दिखाने को कह दिया। दूसरे दिन भी अस्पताल में केवल खानापूर्ति की गई। जेवर के थोरा गांव के रहने वाले 30 वर्षीय रविन्द्र कुमार का कहना है कि मां को अब घर ले आया हूं। हालात स्थिर बनी हुई है। रविन्द्र ने बताया कि पिता का पहले ही स्वर्गवास हो चुका है। देखभाल के लिए इकलौता हूं। उनकी 50 वर्षीय मां सोनवती देवी के मंगलवार रात को बाएं हाथ में दर्द उठा। आलम यह था कि न हाथ उठा पार रही थीं और न ही कुछ बोल पा रही थीं। आनन-फानन में रात करीब साढ़े आठ बजे जेवर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गया।
जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा : स्वास्थ्य विभाग की नाकामी ही कहेंगे कि एक बेटे को बीमार मां के साथ अस्पताल के बाहर रात गुजारनी पड़ी। वह अस्पताल से मां के इलाज की गुहार लगाता रहा। इमरजेंसी में बैठे स्वास्थ्यकर्मियों का दिल नहीं पसीजा। दवाई देकर दूसरे दिन ओपीडी में दिखाने को कह दिया। दूसरे दिन भी अस्पताल में केवल खानापूर्ति की गई। जेवर के थोरा गांव के रहने वाले 30 वर्षीय रविन्द्र कुमार का कहना है कि मां को अब घर ले आया हूं। हालात स्थिर बनी हुई है।
रविन्द्र ने बताया कि पिता का पहले ही स्वर्गवास हो चुका है। देखभाल के लिए इकलौता हूं। उनकी 50 वर्षीय मां सोनवती देवी के मंगलवार रात को बाएं हाथ में दर्द उठा। आलम यह था कि न हाथ उठा पार रही थीं और न ही कुछ बोल पा रही थीं। आनन-फानन में रात करीब साढ़े आठ बजे जेवर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गया। इंजेक्शन दिया, जिससे कुछ राहत मिली। यहां से नोएडा स्थित जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। 102 नंबर पर फोन कर एंबुलेंस बुलाया गया। रात करीब 11 बजे जिला अस्पताल पहुंचे। उन्होंने आरोप लगाते हुए बताया कि जिला अस्पताल में इमरजेंसी में अभद्र व्यहवार किया गया और दवाई देकर सुबह ओपीडी में दिखाने को बोला गया। मां को न भर्ती किया गया और न ही कोई जांच की गई। रात अस्पताल के बाहर बिताई। इस दौरान मां को उल्टी भी हुई। ओपीडी का समय सुबह आठ बजे लिखा था लेकिन सवा नौ बजे गेट खुला। यहां डॉक्टर ने कहा कि बच्चों को देखता हूं, बड़ों को नहीं। दोबारा से इमरजेंसी में जाने को कहा। यहां बड़ी मुश्किल से ड्रिप लगाई गई और दो इंजेक्शन दिए गए। बिना जांच किए कहा गया कि नस ब्लॉक हो गई है। दोपहर 12 बजे इमरजेंसी से डिस्चार्ज भी कर दिया।
रविन्द्र ने बताया कि मां को घर वापस ले जाने के लिए 102 नंबर पर एंबुलेंस को फोन किया तो मदद नहीं मिली। बड़ी मुश्किल से किराए पर वाहन से घर पहुंचा। अस्पताल में वापस पांच दिन बाद बुलाया है। वापस ही बुलाना था तो भर्ती कर लेते। लॉकडाउन में आने-जाने में काफी दिक्कत होती है।
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इस मामले की तत्काल प्रभाव से जांच कराई जाएगी। किसी के दोषी पाए जाने पर तुरंत कार्रवाई करूंगा।
- डॉक्टर दीपक ओहरी, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, गौतमबुद्ध नगर