बड़ा मुद्दा : आए दिन तकरार, किसानों की समस्याएं अपार
अरविद मिश्रा ग्रेटर नोएडा विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने अभी अपने घोषणा पत्र जारी
अरविद मिश्रा, ग्रेटर नोएडा: विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने अभी अपने घोषणा पत्र जारी नहीं किए हैं, लेकिन गौतमबुद्ध नगर की बात की जाए तो यहां किसानों का मुद्दा चुनाव में अहम होगा। गौतमबुद्ध नगर ग्रामीण क्षेत्र की अपनी पहचान को पीछे छोड़ते हुए तेजी से औद्योगिक जिले का चोला ओढ़ रहा है। तीन औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अलावा नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप, फिल्म सिटी जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं हैं। जिनमें हजारों करोड़ रुपये का निवेश हो रहा है। इसके साथ ही किसानों की समस्याओं का पहाड़ भी बढ़ता जा रहा है। जिसकी परिणाम प्राधिकरण व किसानों के बीच टकराव के रूप में सामने आ रहा है।
नोएडा प्राधिकरण में 83, ग्रेटर नोएडा में 124 व यमुना प्राधिकरण के पहले चरण में 96 गांव अधिसूचित हैं। नोएडा व ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अधिकांश गांवों की जमीन का औद्योगिक विकास के लिए अधिग्रहण कर चुके हैं। यमुना प्राधिकरण 29 गांवों की जमीन अधिगृहीत कर चुका है। किसानों की जमीन पर बसे औद्योगिक शहर गति पकड़ चुके हैं, लेकिन इस विकास में किसान अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। खेती जैसा पारंपरिक रोजगार छिनने के बावजूद किसानों के हाथ कुछ खास नहीं लगा है। प्राधिकरणों ने किसानों से जो वादे किए थे वे पूरे नहीं हुए।
बड़ा मुद्दा जमीन की लीजबैक का है, जो वर्षों से फंसा हुआ है। लीजबैक में हुए फर्जीवाड़े की जांच के लिए प्रदेश सरकार ने एसआइटी गठित की। एसआइटी अपनी रिपोर्ट दे चुकी है, इसके बावजूद किसानों की जमीन की लीजबैक अटकी है।
शिफ्टिग पॉलिसी की फाइल भी शासन में वर्षों से धूल फांक रही है। जिन किसानों के भूखंड इसमें फंसे हैं, उनमें बेहद आक्रोश है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किसानों को दस फीसद आबादी भूखंड देने का मामला भी नोएडा व ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण हल रही कर सकें हैं। नोएडा में पांच फीसद व ग्रेटर नोएडा छह फीसद आबादी भूखंड मिलने से किसानों में नाराजगी है। नोएडा में किसानों की आबादी का क्षेत्रफल बढ़ाने की मांग भी पिछले कई वर्षों से हो रही हैं। प्रदेश में सरकार आती जाती रहीं, लेकिन किसानों की इन मांगों को हल करने के लिए किसी भी दल ने गंभीरता से प्रयास नहीं किए।
खेती छिनने के बाद किसानों के लिए रोजगार की बड़ी चुनौती है। किसानों की जमीन पर फैक्ट्री तो लग गईं, लेकिन इसमें किसानों के बच्चों को रोजगार के लिए दरवाजे नहीं खुले। किसान फैक्ट्रियों के बाहर धरना प्रदर्शन कर रोजगार की मांग को पुरजोर तरीके से उठाते रहे हैं। हालांकि किसानों के दबाव का कुछ असर भी हुआ है। प्राधिकरण ने उद्योग को भू आवंटन में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के आरक्षण की शर्त को शामिल किया है। मुआवजे की मांग भी प्राधिकरण में अटकी हुई है। मूल मुआवजा बढ़ाने की मांग के अलावा काफी किसानों को अभी तक 64.7 फीसद मुआवजा नहीं मिला है। ग्राम्य विकास, पंचायती राज व्यवस्था समाप्त होने से गांवों में पटरी से उतरी विकास की गाड़ी ने किसानों को निराश, हताश किया है। यमुना प्राधिकरण के अंतर्गत गांवों के किसानों को 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजा नहीं मिला है। यह मांग लंबे समय से हो रही है। सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।
-सुभाष कसाना प्राधिकरण द्वारा किसानों को 10 प्रतिशत आवासीय भूखंड तथा आबादी निस्तारण नहीं हुआ। इसका निस्तारण तुरंत होना चाहिए।
-सुरेश नंबरदार भूमि अधिग्रहण के बाद रोजगार का वादा सरकार ने किया था। वो पूरा नहीं किया गया है। भूमिहीन हुए किसानों को रोजगार एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए।
-प्रेमवीर मलिक लीजबैक, तैंतीस साला, बारात घर, खेल के मैदान जैसी अनेक सुविधाओं से ग्रामीण वंचित है। इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है।
-सुरेंद्र सिंह नागर