ट्रेंच से जल संरक्षण, ट्रेश मल्चिंग से प्रदूषण पर प्रहार
नए दौर के साथ खेती-किसानी में बदलाव होने लगा है। कृषक नवीन तकनीक से जुड़कर जल और पर्यावरण की सुरक्षा में भागीदार बन रहे है। सहफसली खेती में ट्रेंच से बुवाई कर जल बचा रहे हैं जबकि ट्रैश मल्चिंग से प्रदूषण को कुचल रहे है। गन्ना विभाग और त्रिवेणी शुगर मिल साझा अभियान चलाकर किसानों को नई विधियों से रूबरू करा रहे है।
जेएनएन, मुजफ्फरनगर। नए दौर के साथ खेती-किसानी में बदलाव होने लगा है। कृषक नवीन तकनीक से जुड़कर जल और पर्यावरण की सुरक्षा में भागीदार बन रहे है। सहफसली खेती में ट्रेंच से बुवाई कर जल बचा रहे हैं, जबकि ट्रैश मल्चिंग से प्रदूषण को कुचल रहे है। गन्ना विभाग और त्रिवेणी शुगर मिल साझा अभियान चलाकर किसानों को नई विधियों से रूबरू करा रहे है। ट्रेंच बुवाई से बच रहा 30 फीसल पानी
ट्रेंच विधि से किसानों में बुवाई का रूझान बढ़ने लगा है। गन्ने को छोड़कर अन्य के साथ दलहन, तिलहन की फसलें उगाई जा रही है। इसके लिए किसान क्यारियां बनाकर फसलों का बीजारोपण करते है। जिनकी सिचाई के लिए पानी की खपत कम होती है। दरअसल इस विधि में खेत तैयार करने के बाद ट्रेंच ओपनर से लगभग 1 फीट चौड़ी और लगभग 25-30 सेमी गहरी नाली बनती है। जिसमें एक साथ दो फसल बुवाई कर दोनों की सिचाई एक साथ होती है। वहीं सहफसली खेती पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विभाग किसान को प्रति हैक्टेयर 8 हजार रुपये का अनुदान देता है। इसे विधि से क्षेत्र के दर्जनों किसानों ने अपना शुरू किया है। इससे यह सामान्य खेती में प्रति हैक्टेयर करीब 30 फीसद जल सरंक्षण कर रहे है। कुचल रहे प्रदूषण, बढ़ रही खेत शक्ति
ट्रैश मल्चिंग के माध्यम से प्रदूषण को कुचलने के साथ खेत की उर्वरकता बढ़ रही है। इसके माध्यम से खेत में फसलों के अवशेष पत्तियों, टुकड़ों को मशीन से कुचलकर दबाया जा रहा है। गन्ना विभाग के अनुसार खतौली के कई गांवों में किसानों ने पौधे वाली फसलों की पत्तियों को खेत में ही दबा दिया। उस पर यूरिया डाल दिया। जिससे पत्तियां सड़ने के बाद कार्बोनिक खाद में बदल गई। पहले किसान फसलों के अवशेषों को जला रहे है। गन्ना विभाग ने अभियान चलाया तो लगभग 200 से अधिक किसानों ने यह प्रक्रिया अपनाई है। इनका कहना है..
किसानों में जल एवं पर्यावरण सरंक्षण करने की मुहिम ने जोर पकड़ा है। सहफसली खेती से जल बचाव होता है, जबकि ट्रैश मल्चिंग विधि से वायु प्रदूषण पर रोकथाम लगती है। अब खेत में ही पत्तियों को सड़ाकर खाद बनाया जा रहा है। यह विधि खेती और फसलों के लाभादायक है।
- डा. आरडी द्विवेदी, जिला गन्ना अधिकारी, मुजफ्फरनगर