खतरा अभी टला नहीं साहब
पंचायत चुनाव का मतदान हुए 24 घंटे भी नहीं बीत पाए कि म्यानों से तलवारें निकल आईं। प्रत्याशी का झंडा लहराने से पहले असलाह लहरा दिए गए। केंद्रीय राज्यमंत्री के पैतृक गांव में तनातनी के बाद पंचायतों का दौर और शाहपुर क्षेत्र के गांव पलड़ी में चुनावी रंजिश में हुई हत्या शांति के बाद तूफान उठने के संकेत दे रही है। नई-नई खादी धरने वालों पर एसएसपी अभिषेक यादव के सख्ती भरे संदेश जरूर काम कर गए लेकिन बेलगामों के आगे सबकुछ धरा रह गया।
मनीष शर्मा, मुजफ्फरनगर। पंचायत चुनाव का मतदान हुए 24 घंटे भी नहीं बीत पाए कि म्यानों से तलवारें निकल आईं। प्रत्याशी का झंडा लहराने से पहले असलाह लहरा दिए गए। केंद्रीय राज्यमंत्री के पैतृक गांव में तनातनी के बाद पंचायतों का दौर और शाहपुर क्षेत्र के गांव पलड़ी में चुनावी रंजिश में हुई हत्या शांति के बाद तूफान उठने के संकेत दे रही है। नई-नई खादी धरने वालों पर एसएसपी अभिषेक यादव के सख्ती भरे संदेश जरूर काम कर गए, लेकिन ''बेलगामों'' के आगे सबकुछ धरा रह गया।
जिले में सोमवार को मतदान हुआ और मंगलवार को चुनावी रंजिश में हत्या। पुलिस और प्रशासनिक अमला चुनावी थकान उतार ही रहे थे कि जिले के कई कोनों से अराजक सूचनाएं आनी शुरू हो गई। दिन जैसे-जैसे चढ़ा हालात संजीदा होते चले गए। सबसे पहले केंद्रीय राज्यमंत्री डा. संजीव बालियान के पैतृक गांव कुटबी से बंदूकें निकलने की खबर आई। बात बढ़ते-बढ़ते इतनी बढ़ी कि पिछले दिनों कोरोना के कब्जे में आए केंद्रीय राज्यमंत्री डा. बालियान को दोबारा भीड़ में कूदना पड़ा। बता दें कि इस इलाके से केंद्रीय राज्यमंत्री डा. संजीव बालियान के कुटुंबी भी चुनाव मैदान में हैं। पंचायत का दौर शुरू हुआ तो राजनीतिक तड़का भी लग गया। सियासत को छोड़ कानून व्यवस्था के सवाल का जवाब खोजें तो कुटबी में एसएसपी अभिषेक यादव के ''सात पुश्तों का इलाज'' करने वाले वायरल बयान को बेलगाम खुली चुनौती देते दिखे। जिस तरह सरेआम बंदूकें लहराने के वीडियो वायरल हुए उन्हें देखकर यह सवाल उठना लाजिम है कि क्या यह सख्ती सिर्फ मतदान तक की या खास इलाकों के लिए ही थी? दबंगों से आजिज आकर घरों पर चिपके पलायन के पोस्टर सियासत और सिस्टम को झिझोड़कर पूछ रहे हैं कि वह कहां जाएं? पीड़ितों ने साफ कहा कि गांव में पिछले 10-15 दिन से बाहरी लोग बुलाए हुए हैं। क्या इनकी भनक नहीं लगी या खाकी के नुमाइंदों ने इस तरफ आंखें मूंद रखी थी?
दूसरी चुनौती भी पुलिस को शाहपुर क्षेत्र ही मिली। गांव पलड़ी में घर में घुसकर एक व्यक्ति की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई कि उन पर बताए प्रत्याशी को वोट नहीं देने का शक था। परदेस में मजदूरी करने वाला यह परिवार खास वोट डालने ही गांव आया था। इसके अलावा खतौली के जंधेड़ी जाटान और सूजड़ू के संघर्ष भी फूस के नीचे आग दबी होने का इशारा कर रहे हैं। जिले के बदले हालातों पर गौर करें तो खतरा अभी टला नहीं है। बारूद के ढेर से धुआं उठता देख शायद साहब भी यह बात बखूबी समझ गए हों कि दो मई यानी मतदान का परिणाम आने के बाद चौकसी और बढ़ानी होगी। मतलब साफ है कि कथनी-करनी में मामूली अंतर बवाल-ए-जान बनने में देर नहीं लगेगी।