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कर्मयोगी संत के तप से चमका शुकतीर्थ

पौराणिक तीर्थ नगरी का शुकतीर्थ का जीर्णोद्धार कर वीतराग स्वामी कल्याणदेव ने भारत की सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर को गौरवान्वित किया। भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की सलाह पर जीर्ण शीर्ण लुप्त प्राय महाभारतकालीन महा मुनि शुकदेव की तपोभूमि को कर्मयोगी संत ने देश में भागवत का मुख्य केंद्र बना दिया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Jul 2019 10:15 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jul 2019 06:27 AM (IST)
कर्मयोगी संत के तप से चमका शुकतीर्थ
कर्मयोगी संत के तप से चमका शुकतीर्थ

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। पौराणिक तीर्थ नगरी का शुकतीर्थ का जीर्णोद्धार कर वीतराग स्वामी कल्याणदेव ने भारत की सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर को गौरवान्वित किया। भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की सलाह पर जीर्ण शीर्ण लुप्त प्राय: महाभारतकालीन महामुनि शुकदेव की तपोभूमि को कर्मयोगी संत ने देश में भागवत का मुख्य केंद्र बना दिया।

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ऐतिहासिक श्रीमद्भागवत की उद्गम स्थली शुकतीर्थ के विकास को वीतराग स्वामी कल्याणदेव ने जीवन पर्यंत तप, त्याग और सेवा की। तीन सदी के युग²ष्टा, 129 वर्षीय ब्रह्मलीन स्वामी कल्याणदेव का जीवन विराट, विलक्षण पुरुषार्थ का प्रतीक था। समाज उत्थान के कार्यों की अमिट सेवा कर महान संत देश में ध्रुव स्थान पा गए। उनके कृतित्व की कहानियां समाज और राष्ट्र को प्रेरणा देती है। वर्ष 1944 में प्रयाग कुम्भ में संत महात्माओं की मौजूदगी में संगम तट पर गंगाजल हाथ में लेकर स्वामी कल्याणदेव ने शुकतीर्थ के जीर्णोद्धार का संकल्प लिया। पंडित मदन मोहन मालवीय ने चार सितंबर 1945 को शिक्षा ऋषि को काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से एक पत्र लिखा, जिसमें शुकदेव आश्रम में श्रीमछ्वागवत के विद्वान वैदिकों से यज्ञ और उपदेश कराने की सलाह दी। स्वामी कृष्ण बोधाश्रम महाराज, स्वामी करपात्री, गोकुलनाथ वल्लभाचार्य, रामानुजाचार्य आदि देश के संतों के मार्गदर्शन में वीरराग संत ने शुकतीर्थ को विकसित किया। पांडवों के वंशज महाराजा परीक्षित को व्यासनंदन श्री शुकदेव मुनि ने मोक्षदायिनी भागवत कथा सुनाई थी। 14 जुलाई 2004 को पावन वटवृक्ष और शुकदेव मंदिर की परिक्रमा कर दिव्य संत ब्रह्मलीन हो गए। परम शिष्य एवं पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद महाराज कहते है कि पूज्य गुरुदेव का जीवन वंदनीय, अभिनंदनीय, अनुकरणीय है। वीतराग संत ने फैलाया शिक्षा का उजियारा

स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी से भेंट के बाद स्वामी कल्याणदेव ने ग्रामोत्थान का बीड़ा उठाया। अशिक्षा के अंधियारे को मिटाने के लिए उन्होंने ग्रामीण अंचल में उस समय स्कूल कॉलेज खोले, जब देश को आजादी मिली ही थी। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने भोपा जनता इंटर कॉलेज में उन्हें पहली बार शिक्षा ऋषि की उपाधि देकर संबोधित किया था। आचार्य गुरुदत्त आर्य बताते हैं कि भोपा की सभा में चौधरी साहब ने भी उनके कार्यों का गुणगान किया था। कल्याणकारी इंटर कॉलेज बघरा के पूर्व प्रवक्ता गजेंद्र पाल सिंह बताते है कि बघरा, भोपा और मोरना को वीतराग संत ने अनेक शिक्षण संस्थाएं दी। संत की सेवाओं को मिला राष्ट्रीय सम्मान

वर्ष 1982 में महान राष्ट्र सेवाओं के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने स्वामी कल्याणदेव को पद्मश्री की उपाधि से अंलकृत किया। वर्ष 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें पहला नंदा नैतिक पुरुस्कार प्रदान किया। वर्ष 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति के केआर नारायणन ने शिक्षा ऋषि को पद्मभूषण का राष्ट्रीय सम्मान दिया।


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