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नि:स्वार्थ की गई सेवा का अर्थ है भलाई

प्यारे बच्चों! भलाई यानि परहित अथवा दूसरों की सहायता करना अच्छा होता है। भलाई मनुष्य को देवताओं का दर्जा प्रदान करती है और इसके प्रभाव से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। निस्वार्थ सेवा का भाव भी भलाई का एक रूप है भलाई के समान कोई दूसरा धर्म नहीं होता। श्री रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने भी लिखा है परहित सरिस धर्म नहि भाई। पर पीड़ा सम नहि अधमाई।।

By JagranEdited By: Published: Wed, 11 Nov 2020 06:57 PM (IST)Updated: Wed, 11 Nov 2020 06:57 PM (IST)
नि:स्वार्थ की गई सेवा का अर्थ है भलाई
नि:स्वार्थ की गई सेवा का अर्थ है भलाई

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। प्यारे बच्चों! भलाई यानि परहित अथवा दूसरों की सहायता करना अच्छा होता है। भलाई मनुष्य को देवताओं का दर्जा प्रदान करती है और इसके प्रभाव से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। निस्वार्थ सेवा का भाव भी भलाई का एक रूप है, भलाई के समान कोई दूसरा धर्म नहीं होता।

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श्री रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने भी लिखा है

'परहित सरिस धर्म नहि भाई।

पर पीड़ा सम नहि अधमाई।।'

भलाई करने वाला व्यक्ति उत्तम पुरुष की श्रेणी में आता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना ही इस प्रकार से की है कि परोपकार इसके मूल में समाहित है। भलाई सृष्टि के कण-कण में वास करती है, सूर्य, चंद्र, वायु, पेड़-पौधे, नदी, हवा, बादल सभी बिना किसी स्वार्थ के सेवा में लगे हुए हैं। भलाई का विचार प्रकृति से ही लिया गया है। यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे, मनुष्य वह है जो मनुष्य के लिए मरे।

निज जीवन तो सब जीते हैं, औरों के लिए जो जीता है।

उसका हर आंसू रामायण, प्रत्येक कर्म ही गीता है।

भगवान ने केवल मानव शरीर की रचना की है, हमारे विचारों की नहीं। हमारे विचार अच्छे होंगे तो हम जीवन में अच्छा ही करेंगे, लेकिन अगर हम किसी के प्रति बुरे विचार मन में रखेंगे तो हम अच्छा सोच कर भी अच्छा नहीं कर पाएंगे। अच्छे संस्कारों से ही अच्छे विचार बनते हैं और अच्छे संस्कार परिवार से ही आते हैं।

परिवार एवं विद्यालय समाज की लघु इकाई हैं। हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर उन्हें समाज का एक समझदार, सभ्य एवं संस्कारी व्यक्ति बनाते हैं। अच्छे संस्कार ही हमारे मन, मस्तिष्क का शुद्धिकरण करते हैं तथा मस्तिष्क को अच्छे विचारों की ओर ले जाते हैं और हम निस्स्वार्थ भाव से सबका भला करने का सोचते हैं। बच्चा जब तीन साल का होता है, तब विद्यालय में प्रवेश करने के बाद उसके अंदर शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का भी समावेश होता है। अगर बच्चों में शुरू से ही अच्छे संस्कार नहीं होंगे तो न ही वह अपनी संस्कृति से जुड़ पाएंगे और न ही समाज और प्रकृति से जुड़ पाएंगे। अच्छे संस्कारों से ही मनुष्यों मे सबके प्रति भलाई का भाव उत्पन्न होता है।

न्यू होराइजन स्कूल ने इस बार दीपावली के अवसर पर त्योहार से व्यवहार, संस्कृति से संस्कार सप्ताह मनाया है। इसके तहत विभिन्न गतिविधियां आयोजित कराई हैं, क्योंकि मेरा मानना है कि हम बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़कर अच्छे व्यवहार और अच्छे संस्कारों की वृद्धि कर सकते हैं। किसी की निस्वार्थ भाव से की गई भलाई से हमें सच्चे आनंद की अनुभूति होती है।

- मीनाक्षी मित्तल, प्रधानाचार्या, न्यू होराइजन स्कूल।


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