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राधेश्याम ने शहादत देकर बचाई थी साथियों की जान

भारत-पाक के बीच वर्ष 1971 की जंग में जनपद का बेटा भी मातृभूमि पर न्यौछावर हो गया था। दुश्मनों की फौज ने भारतीय सैनिकों पर हमले के साथ जमीन में माइंस बिछाई थी ताकि सैन्य टुकड़ी को नेस्तानबूत कर सकें। दुश्मनों की मंशा पर लांस नायक राधेश्याम ने पानी फेर दिया। मां भारती के इस लाल ने जमीन में बिछी माइंस खोज निकाली मगर जैसे ही उसे उखाड़ा तो विस्फोट हो गया। विस्फोट में राधेश्याम ने शहादत देकर अपने एक दर्जन से अधिक साथी जवानों की जिदगी बचा ली।

By JagranEdited By: Published: Fri, 09 Aug 2019 11:33 PM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2019 06:25 AM (IST)
राधेश्याम ने शहादत देकर बचाई थी साथियों की जान
राधेश्याम ने शहादत देकर बचाई थी साथियों की जान

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। भारत-पाक के बीच वर्ष 1971 की जंग में जनपद का बेटा भी मातृभूमि पर न्यौछावर हुआ था। दुश्मनों की फौज ने भारतीय सैनिकों पर हमले के साथ जमीन में माइंस बिछा दी थी, ताकि सैन्य टुकड़ी को नेस्तानबूत कर सकें। पर दुश्मनों की मंशा पर लांसनायक राधेश्याम ने पानी फेर दिया। मां भारती के इस लाल ने जमीन में बिछी माइंस खोज निकाली, मगर जैसे ही उसे उखाड़ा, विस्फोट हो गया। राधेश्याम ने शहादत देकर अपने एक दर्जन से अधिक साथी जवानों की जिदगी बचा ली।

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छपार के गांव बरला निवासी किसान रामानंद त्यागी के इकलौते पुत्र राधेश्याम त्यागी के भीतर बचपन से ही देश सेवा का जज्बा था। वर्ष 1957 में वे सेना में भर्ती हो गए। शुरुआती दौर में वे सेना की अलग-अलग टुकड़ी में लांसनायक रहे। वर्ष 1971 में भारत-पाक के बीच युद्ध का एलान हो गया। उस वक्त राधेश्याम अंबाला छावनी में तैनात थे, यहां उनके साथ पत्नी बिमला देवी, आठ माह का बेटा अनिल भी था। टुकड़ी को तत्काल लद्दाख में जाने का हुक्म मिला तो नायक राधेश्याम पत्नी-बेटे को छोड़ दुश्मनों से लोहा लेने निकल गए। उनकी रेजीमेंट बंगाल इंजीनियर ग्रुप की टुकड़ी ने लद्दाख में दुश्मनों से डटकर मुकाबला किया। युद्ध में राधेश्याम त्यागी व उनके साथी भूमिगत माइंस बिछाकर दुश्मनों को मारने व दुश्मनों द्वारा बिछाई गई माइंस को ढूंढकर जवानों को बचाने का कार्य करते थे। युद्ध के दौरान दुश्मनों द्वारा बिछाई गई माइंस को ढूंढते समय हुए भीषण विस्फोट में वे शहीद हो गए। देश की रक्षा करते हुए लांसनायक राधेश्याम त्यागी 28 वर्ष की आयु में ही शहादत पा गए थे।

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शहादत के बाद मिला स्वर्ण पदक

शहीद की पत्नी बिमला देवी बताती हैं कि पति को शहादत के बाद भारत सरकार ने स्वर्ण पदक से नवाजा था। उस समय बिमला देवी को 130 रुपये पेंशन मिलती थी और 2100 रुपये फंड के रूप में मिले थे। सरकार ने उत्तराखंड में 18 बीघा जमीन भी दी हुई है। जिसके माध्यम से उनका परिवार अपना जीवन यापन कर रहा है। बिमला को पति के शहीद होने की जानकारी कई दिनों बाद मिली थी, चूंकि उस दौर में टेलीफोन की सेवा नहीं थी। भारतीय सेना ने उन्हें टेलीग्राम के माध्यम से सूचना भेजी थी।

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बेटे को सेना में नहीं

भेजने का मलाल

बिमला कहती हैं कि पति ने देश की रक्षा करते हुए अपनी जान गंवाई थी। इकलौते बेटे अनिल को सेना में भर्ती नहीं कराने का मलाल आज भी है। उनकी इच्छा अपने इकलौते पुत्र को भी पति की तरह ही सेना में भेजकर देशसेवा करने की थी। पति को याद करते समय वह भावुक हो गईं। बिमला देवी के परिवार में पुत्र अनिल, पुत्रवधू सीमा व पौत्री वर्षा व पौत्र विशाल हैं। शहीद राधेश्याम त्यागी के नाम से गांव बरला में प्रतिवर्ष कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।


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