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बारूदी सुरंग फटने के बाद भी नहीं हारी थी हिम्मत

देश के लिए मर मिटने वालों ने जान की परवाह न कर घायल होने के बाद भी लड़ाई लड़ी। सेना में चालक रहे फौजी ने 71 की लड़ाई में बारूदी सुरंग की चपेट में आने के बावजूद सेना का ट्रक व सामान बचाए रखा।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Aug 2019 08:26 PM (IST)Updated: Thu, 08 Aug 2019 08:26 PM (IST)
बारूदी सुरंग फटने के बाद भी नहीं हारी थी हिम्मत
बारूदी सुरंग फटने के बाद भी नहीं हारी थी हिम्मत

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। देश के लिए मर मिटने वालों ने जान की परवाह न कर घायल होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी थी। पाकिस्तान से 1971 में हुई जंग में नेपाल सिंह ने गजब का साहस दिखाया था। सेना में चालक रहे फौजी ने बारूदी सुरंग की चपेट में आने के बावजूद सेना का ट्रक और सामान बचाए रखा था। नेपाल सिंह में आज भी देशभक्ति का जज्बा कूट-कूटकर भरा हुआ है।

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हरेटी निवासी सेना से रिटायर्ड चालक नेपाल सिंह (71) पाकिस्तान से 1971 में हुए युद्ध में भारतीय सैनिकों की गौरवगाथा सुनाते हुए गौरवान्वित महसूस करते हैं। नेपाल सिंह बताते हैं कि 1969 में देशभक्ति का जज्बा लिए वह मेरठ से सेना में भर्ती हुए थे। दो साल बाद ही भारत-पाक के बीच लड़ाई छिड़ गई। गुजरात के कच्छ इलाके में युद्ध के दौरान ट्रकों से खाना और गोला बारूद पहुंचाने की ड्यूटी अफसरों ने लगाई थी। रात के समय बंद लाइटों में गाड़ी चलाते हुए युद्ध कर रही टुकड़ी तक सामान पहुंचाने का जिम्मा उन पर था। पश्चिमी पाकिस्तान के बॉर्डर पर सेना बहादुरी दिखाते हुए पाकिस्तान में 100 किलोमीटर भीतर घुस गई थी। धार पारकर जिले की नगर पारकर तहसील पर सेना ने कब्जा कर लिया था। पीछे हटी पाकिस्तान सेना के जवानों ने जाते हुए रास्ते में बारूदी सुरंगें बिछा दी थीं। भारतीय सेना के कब्जा करने के बाद इंजीनियर बारूद से बचाने के लिए झंडी लगाकर ट्रक निकालने का रास्ता बताते थे। सामान ले जाने के दौरान एक दिन गाड़ी के आगे बारूद बिछा होने का शक हुआ, नीचे उतरकर देखा तो नेपाल सिंह उसकी चपेट में आ गए। बारूद फटने से दाहिना पैर बुरी तरह से खराब हो गया, लेकिन घायल होने से पहले सेना की गाड़ी और सारा सामान उन्होंने बचा लिया था। घायल होने बावजूद सेना के साथ पाकिस्तान की कब्जाई जगह पर कई दिनों तक रुके रहे। भाई व बेटे ने भी

की देश की सेवा

पुरकाजी : नेपाल सिंह के बड़े भाई ब्रह्मपाल और बड़ा बेटा अनिल भी सेना में रहे हैं। भाई का रिटायरमेंट के बाद निधन हो गया था। बेटा भी सेना की नौकरी पूरी करने के बाद पतंजलि में प्राइवेट जॉब कर रहा है। छोटे बेटे सुनील का भी भर्ती के बाद नंबर आ गया था, किसी कारणवश वह ज्वाइन नहीं कर पाया। बताया कि बड़े भाई भी पाकिस्तान से हुए युद्ध में शामिल रहे थे।

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