अपने नफ्स पर काबू करने का नाम है रोजा
मौलाना हामिद वारसी का कहना है कि मुकद्दस रमजान तकवे (जीवन के नियमों का पाबंद) का पाबंद बनाता है। सही मायने में रोजा नफ्स पर पाबंदी का नाम है। यदि इंसान रमजान में पहले दिन से तकवे की पाबंदी करे तो पूरे साल तक वह नेक जिदगी गुजार सकता है।
जेएनएन, मुजफ्फरनगर। मौलाना हामिद वारसी का कहना है कि मुकद्दस रमजान तकवे (जीवन के नियमों का पाबंद) का पाबंद बनाता है। सही मायने में रोजा नफ्स पर पाबंदी का नाम है। यदि इंसान रमजान में पहले दिन से तकवे की पाबंदी करे तो पूरे साल तक वह नेक जिदगी गुजार सकता है।
मौलाना हामिद वारसी ने कहा कि कुरआन पाक में अल्लाह इरशाद फरमाता है कि रोजा हर बालिग व तंदुरुस्त औरत व मर्द पर फर्ज करार दिया गया है। कहा कि रोजा सिर्फ खाना-पीना छोड़ने का नाम नहीं है, बल्कि जिस्म के हर हिस्से के लिए रोजा अनिवार्य होता है, इसलिए किसी की बुराई करना या गलत सोचना और गलत देखना भी रोजे में बातिल यानी मना है। इस तरह हर इंसान छोटे से लेकर बड़े गुनाह से भी बच सकता है। अगर इंसान ने रोजा रखकर तकवे की पाबंदी नहीं कि तो उसका रोजा खत्म हो जाता है। बताया कि कुरआन पाक में तक्वे को शान-ए-इम्त्याज कहा गया है। उन्होंने कहा कि मुकद्दस रमजान में कुरआन-ए-पाक नाजिल हुआ। यह महीना बहुत मुकद्दस है। हर शख्स को इस महीने की अहमियत को समझना चाहिए। यह माह अल्लाह की इबादत में गुजारना चाहिए।
इस महीने में हर नेकी का अज्र यानी सवाब सत्तर नेकियों में बदल जाता है। यह सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नत है। यह माह लोगों के साथ गमख्वारी करने का है। जो शख्स किसी को रोजा इफ्तार कराए, उसके गुनाह माफ होने और जहन्नुम की आग से निजात का सबब होगा। हर नेक दुआ कबूल होती है। तीन हिस्सो में है रमजान माह
रमजान माह का अव्वल हिस्सा (शुरुआती 10 दिन ) रहमतें बरसाने वाला है। दर्मियानी यानी बीच का हिस्सा (मध्य के 10 दिन ) गुनोहों से तौबा, मगफिरत का है, जबकि आखिरी हिस्सा (आखिर के 10 दिन ) जहन्नुम की आग से निजात पाने का है।