गठबंधन का फायदा, फिर भी चुनौतियां कम नहीं
बागपत से बाहर पहली बार चुनाव लड़ेंगे अजित सिह। जाट मतों को लेकर भाजपा-रालोद में होगी खींचतान।
मुजफ्फरनगर (कपिल कुमार) : सियासी सफर में पहली बार 'छोटे चौधरी' बागपत से बाहर किस्मत आजमाएंगे। लोकसभा चुनाव के लिए सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन में चुनाव लड़ने की अधिकृत घोषणा हो गई है। रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। मौजूदा सियासी माहौल में इस सीट से रालोद का भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला बड़ा है। गठबंधन होने के फायदे के साथ रालोद के सामने कई चुनौती भी होंगी।
सपा-बसपा गठबंधन के साथ रालोद के आने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव की जंग दिलचस्प हो गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह अपनी परंपरागत बागपत सीट छोड़कर पहली बार मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। बीते एक साल से रालोद ने यह संकेत दे रखा था, उसी के तहत पार्टी ने मुजफ्फरनगर और शामली में जनाधार बढ़ाने की रणनीति बना रखी थी। जनसंवाद के जरिए 'छोटे चौधरी' ने जाटों और मुस्लिमों को एक मंच दिया। कैराना उपचुनाव में उन्हें अपनी कोशिशों का फायदा भी मिला। सपा से आई तबस्सुम हसन रालोद के चुनाव चिह्न हैंडपंप पर कैराना से सांसद बन गई। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बिखरे जाट-मुस्लिम समीकरण को साधना रालोद के लिए आसान नहीं था। रालोद को कैराना की जीत से संजीवनी मिली, उसके बाद रणनीति के तहत चौधरी अजित सिंह को मुजफ्फरनगर से चुनावी मैदान में लाने की सुगबुगाहट होने लगी थी। बीते लोकसभा चुनाव में दंगे के बाद ध्रुवीकरण और मोदी लहर से यह सीट भाजपा ने करीब चार लाख मतों से जीती थी। पहली मर्तबा चुनाव लड़े डॉ. संजीव बालियान न केवल शानदार तरीके से जीते, बल्कि मोदी मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री भी बन गए। हालांकि बाद में हुए विस्तार में उनसे मंत्री पद लेकर बागपत के सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह को दे दिया गया। मुजफ्फरनगर संसदीय क्षेत्र में भाजपा को शिकस्त देना रालोद के लिए इतना आसान नहीं है, क्योंकि पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक और भारत-पाक तनाव के बाद से सियासी माहौल में तब्दीली है। वोट के गणित में रालोद को गठबंधन का बड़ा फायदा दिख रहा है। सपा और बसपा के वोट बैंक की भूमिका भी अहम रहेगी। राजनीतिक तौर पर बसपा के पक्ष में खड़ी भीम आर्मी का भी चुनाव पर असर रहेगा। सबसे अहम् सवाल यह है कि कैराना उपचुनाव की तर्ज पर जाट-मुस्लिम समीकरण मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भी बन पाएगा या नहीं? 'छोटे चौधरी' की जीत की राह में ऐसी चुनौतियां कम नहीं हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जाटों ने भाजपा के हक में मतदान किया था। अबकी बार जाट मतों का भाजपा और रालोद में बंटवारा हो सकता है। भाजपा के अति पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक में रालोद किस तरीके से सेंध लगा पाएगा, यह देखना भी दिलचस्प होगा।