नदी पार करने में दांव पर लगानी पड़ती है जिदगी
देश की आजादी को भले ही 71 साल बीत गए हो लेकिन योगेंद्र नगर गांव के लोगों को अपने खेतों पर जाने के लिए सोलानी नदी पार करने को अभी भी रोजाना अपनी जिदगी दांव पर लगानी पड़ती है।
मोरना (मुजफ्फरनगर) : देश की आजादी को भले ही 71 साल बीत गए हों, लेकिन योगेंद्र नगर गांव के लोगों को अपने खेतों पर जाने के लिए सोलानी नदी पार करने को अभी भी रोजाना अपनी जिदगी दांव पर लगानी पड़ती है। इस दौरान कई किसानों और पशुओं की मौत हो चुकी है। प्रत्येक चुनाव के दौरान गांव में नेताओं के किए वादे खोखले साबित हुए और लंबा समय बीतने पर भी नदी पर पुल नहीं बना है।
वर्ष 1976 में तत्कालीन डीएम योगेंद्र नारायण माथुर ने बाढ़ग्रस्त गांव बख्शीराम कान्हा वाली की दुर्दशा को देखते हुए विकास खंड मोरना क्षेत्र में सोलानी नदी के किनारे ऊंचे टिल्ले पर 29 फरवरी 1976 में प्लाट आवंटित कर बसा दिया था। ग्रामीणों ने उनके नाम पर ही गांव का नाम योगेंद्र नगर रखा था। ग्रामीण तो बाढ़ से सुरक्षित हो गए, लेकिन खेती की जमीन नदी के पार रह गई। जिसके चलते ग्रामीणों का रहन-सहन तो बदला, लेकिन आजीविका के लिए उन्हें हर वर्ष बाढ़ से जंग करनी पड़ती है। गत वर्षों में नदी पार करते समय ओमप्रकाश, मुख्तियार सिंह, अर्जुन समेत पांच लोगों की सोलानी नदी में डूबने से मौत हो चुकी है। किसान इंद्रजीत, रतन, चंद्र के भैंसे मर चुके हैं तथा अतर सिंह, सेवाराम, विपिन के ट्रैक्टर पानी में डूबने से खराब हो चुके हैं। गांव के ऋषिपाल, भूपेंद्र, अतर सिंह, सुम्मा, धीर सिंह, जल सिंह, लखराम, भूप सिंह, प्रताप सिंह, सोम सिंह, तेजा, मुकेश, सुभाष, रामकली, मुनेश, चम्पा, शीला, तारा आदि का कहना है कि उनके गांव में करीब 1100 मतदाता हैं। प्रत्येक चुनाव में नेता उनके गांव में वोट मांगने आते हैं और वादे करते हैं कि सोलानी नदी पर पुल बनवाएंगे, लेकिन गांव को बसे 43 साल बीत चुके हैं, परंतु नदी पर पुल नहीं बना है।