जब अस्पताल ही बीमार तो कैसे हो इलाज?
जानसठ : अव्यवस्थओं के कारण सरकारी अस्पताल स्वयं बीमार हो चला है। महीने में करीब बीस हजा
जानसठ : अव्यवस्थओं के कारण सरकारी अस्पताल स्वयं बीमार हो चला है। महीने में करीब बीस हजार मरीज, करीब दौ सौ डिलीवरी वो भी बिना डाक्टरों के। कैसे चलेगा सरकारी अस्पताल? इस बारे में कोई बोलने को तैयार नहीं है। पूरे सीएचसी में मात्र दो डाक्टर तैनात हैं, जिनमें से प्रभारी को रोज मी¨टग करनी पड़ती है, और एक को इमरजेंसी में ड्यूटी करनी पड़ती है।
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को सरकार कितनी भी बेहतर बनने की कोशिश करे लेकिन अव्यवस्थाओं के कारण अस्पताल का बुरा हाल है। अस्पताल में मात्र दो डाक्टर तैनात हैं, जिसमें से एक चिकित्सा अधिकारी को प्रतिदिन होने वाले स्वास्थ्य कार्यक्रम में बाहर रहना पड़ता है। जबकि एक डाक्टर को चौबीस घंटे इमरजेंसी ड्यूटी में रहना पड़ता है। अब ऐसे में अस्पताल में प्रतिदिन आने वाले करीब पांच सौ से एक हजार मरीजों को राम भरोसे ही रहना पड़ता है। सीएचसी में एक आयुष डाक्टर भी तैनात है, उसे भी अस्पताल में आने वाले मरीजों को देखना पड़ता है। सीएचसी में हड्डी रोग विशेषज्ञ न होने के कारण एक्सरे की सुविधा भी बंद पड़ी है। अस्पताल की सफाई व्यवस्था भी भगवान भरोसे है। अस्पताल के परिसर में चारों ओर गंदगी के ढेर लगे हुए है। सार्वजनिक शौचालयों में तो कई महीनों से सफाई न होने के कारण बंद हो गया है। बगैर महिला चिकित्सक के कराया जाता प्रसव
करीब सौ गांवों पर बने सीएचसी में प्रतिदिन पांच से सात डिलीवरी रोज होती है। जबकि अस्पताल में एक भी महिला चिकित्सक की तैनाती नहीं है। केवल तीन संविदा स्टाफ नर्स ही रात-दिन इस काम को अंजाम देती हैं। कुछ महीने पहले एक महिला चिकित्सक शैला प्रवीन की तैनाती की गई थी, लेकिन वह भी करीब दो माह से बिना बताए ड्यूटी से गायब हैं। ऐसे में महिला मरीजों को भटकना पड़ता है। नहीं है कोई विशेषज्ञ डाक्टर
अस्पताल में बाल रोग, हड्डी रोग, कुष्ठ रोग, दंत रोग आदि रोगों के लिए चिकित्सकों की तैनाती नहीं होने के कारण गंभीर बीमारियों के मरीजों को राम भरोसे रहना पड़ता है। डाक्टरों की अनुपस्थिति में कई बार तो एक्सरे धोने वाले चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी विवेक कुमार भी मरीजों के पर्चो पर दवाइयां लिखते देखे जा सकते है। ऐसे में ऊपर वाला ही मरीजों को बचाए। तीन पीएचसी के गंभीर मरीज भी यहीं आते हैं
सिखेड़ा, मीरापुर व राजपुर पीएचसी भी इसी अस्पताल के अंदर आती है। वहां पर भी डाक्टरों की कमी के कारण मरीजों को जानसठ आने के लिए कहा जाता है। लेकिन यहां भी डाक्टरों की कमी के कारण उन्हें जिला अस्पताल भेज दिया जाता है। अब ऐसे में गरीब आदमी कहां कहां धक्के खाए। इन्होंने कहा..
डाक्टर की संख्या बढ़ाने के लिए कई बार लिखा जा चुका है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है। डाक्टरों की अनुपस्थिति में कई बार आयुष डाक्टर से काम चलाना पड़ता है। उन्हें प्रतिदिन स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए बाहर ही रहना पड़ता है।
डा. अशोक कुमार प्रभारी चिकित्सक सीएचसी जानसठ।