मुजफ्फरनगर दंगा: कवाल कांड में सातों मुल्जिम दोषी करार, आठ फरवरी को सुनाई जाएगी सजा
मुजफ्फरनगर दंगे की वजह बने कवाल के दोहरे हत्याकांड में आज स्थानीय अदालत का फैसला आने से पहले कचहरी में भारी सुरक्षा व्यवस्था रही। मलिकपुरा व कवाल में भी फोर्स तैनात रहा।
By Ashu SinghEdited By: Published: Wed, 06 Feb 2019 01:56 PM (IST)Updated: Wed, 06 Feb 2019 02:44 PM (IST)
मुजफ्फरनगर, जेएनएन। मुजफ्फरनगर दंगे की वजह बने कवाल के दोहरे हत्याकांड में स्थानीय अदालत ने बुधवार को सातों मुल्जिमों को दोषी करार दिया। सजा सुनाने की तारीख आठ फरवरी तय की गई है।
हत्या के बाद भड़का था दंगा
करीब साढ़े पांच साल पहले देश की सुर्खियां बने कवाल गांव में मलिकपुरा के ममेरे भाइयों सचिन व गौरव हत्याकांड में न्यायालय ने बुधवार को सातों मुल्जिमों को दोषी करार दिया। एडीजे-7 न्यायालय ने सजा पर निर्णय की तारीख आठ फरवरी तय की है। पुलिस-प्रशासन की ओर से एहतियातन गांव में सुरक्षा व्यवस्था के प्रबंध किए गए। 27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में हुई शाहनवाज, सचिन और गौरव की हत्या के बाद जिले में दंगा भड़क गया था। वादी पक्ष के अधिवक्ता अनिल जिंदल ने बताया कि इस मामले में मृतक गौरव के पिता रविन्द्र की ओर से जानसठ कोतवाली में कवाल निवासी मुजस्सिम, मुजम्मिल, फुरकान, नदीम, जहांगीर, शाहनवाज (मृतक) और अफजाल के विरुद्ध हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था। वहीं, मृतक शाहनवाज के पिता सलीम ने दोनों मृतकों सचिन व गौरव के अलावा उनके परिजनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।
एसआइटी ने की जांच
एसआइटी ने जांच के बाद शाहनवाज हत्याकांड में एफआर लगा दी थी और दोहरे हत्याकांड में पांच आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट न्यायालय में दाखिल कर दी थी। इस मामले में पांच आरोपित मुजस्सिम, मुजम्मिल, फुरकान, नदीम और जहांगीर तभी से जेल में बंद हैं। अनिल जिंदल ने बताया कि मुकदमे की सुनवाई एडीजे-7 हिमांशु भटनागर के न्यायालय में हुई।
यह था कवाल कांड
27 अगस्त 2013। इस तारीख के बाद जिले का अमन-चैन गायब हो गया था। इसके बाद पंचायतों का दौर चला और एकाएक जनपद दंगे की चपेट में आ गया। बुधवार को सचिन और गौरव की हत्या के इस बहुचर्चित मामले में अदालत के निर्णय पर सभी की निगाहें टिकी रहीं। कवाल गांव के उस चौराहे पर आज सन्नाटा है। इसी चौराहे पर दोनों युवकों की पीट-पीटकर हत्या की गई थी।
फांसी की सजा चाहते हैं
कवाल गांव में मंगलवार के दिन यह अमंगल हुआ था। वारदात को लगभग साढ़े पांच साल होने को हैं। वारदात के बाद से सचिन, गौरव के गांव मलिकपुरा के लोग अब कवाल के उस चौराहे से नहीं गुजरते। गांव के आने-जाने के लिए बाईपास का रास्ता अपना लिया है। लंबे समय चली कानूनी प्रक्रिया के बाद दोनों ही पक्ष न्यायालय के फैसले पर टकटकी लगाए रहे। मलिकपुरा में रहने वाले सचिन के पिता बिशन और मां मुनेश बेटे को याद करते ही रुआंसे हो उठते हैं। वह बेटे के हत्यारों के लिए कम से कम फांसी की सजा चाहते हैं।
दुनिया ही उजड़ गई
बिशन कहते हैं कि हमारी तो दुनिया ही उजड़ चुकी है, अब तो इंसाफ मिलना चाहिए। बेटे के जाने के बाद में बहू अपने बेटे को लेकर मायके चली गई। पोता ही एक सहारा था, वह भी अब उनके पास नहीं है। वहीं, गौरव के पिता रविंद्र सिंह का कहना है कि उनका इकलौता पुत्र ही उनके जीने का सहारा था, जिसे हत्यारों ने निर्ममतापूर्वक मार डाला। वह कहते हैं कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है कि उनके बेटे के हत्यारों को कड़ी सजा मिलेगी। उधर, दूसरे पक्ष के मृतक शाहनवाज के पिता सलीम का कहना है कि सचिन व गौरव अपने परिवार के संग उसके पुत्र की हत्या करने आए थे। हत्या कर भागते समय भीड़ ने दोनों को मार दिया।
कवाल से भड़की थी चिंगारी
कवाल की वारदात के बाद से पुलिस पर एकपक्षीय कार्रवाई के आरोप लगने लगे। बाद में पंचायतों का दौर चला और माहौल बिगड़ता चला गया। सात सितंबर की नंगला मंदौड़ पंचायत से लौटते लोगों पर कई जगह हमले हुए। अगले दिन जिले में हिंसा भड़क उठी। पहली बार गांवों को सांप्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा, जिसमें 65 से अधिक लोगों की जान चली गई। करोड़ों की संपत्तियां जला दी गईं। करीब 40 हजार लोगों ने गांवों से भागकर राहत शिविरों में आसरा लिया।
हत्या के बाद भड़का था दंगा
करीब साढ़े पांच साल पहले देश की सुर्खियां बने कवाल गांव में मलिकपुरा के ममेरे भाइयों सचिन व गौरव हत्याकांड में न्यायालय ने बुधवार को सातों मुल्जिमों को दोषी करार दिया। एडीजे-7 न्यायालय ने सजा पर निर्णय की तारीख आठ फरवरी तय की है। पुलिस-प्रशासन की ओर से एहतियातन गांव में सुरक्षा व्यवस्था के प्रबंध किए गए। 27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में हुई शाहनवाज, सचिन और गौरव की हत्या के बाद जिले में दंगा भड़क गया था। वादी पक्ष के अधिवक्ता अनिल जिंदल ने बताया कि इस मामले में मृतक गौरव के पिता रविन्द्र की ओर से जानसठ कोतवाली में कवाल निवासी मुजस्सिम, मुजम्मिल, फुरकान, नदीम, जहांगीर, शाहनवाज (मृतक) और अफजाल के विरुद्ध हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था। वहीं, मृतक शाहनवाज के पिता सलीम ने दोनों मृतकों सचिन व गौरव के अलावा उनके परिजनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।
एसआइटी ने की जांच
एसआइटी ने जांच के बाद शाहनवाज हत्याकांड में एफआर लगा दी थी और दोहरे हत्याकांड में पांच आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट न्यायालय में दाखिल कर दी थी। इस मामले में पांच आरोपित मुजस्सिम, मुजम्मिल, फुरकान, नदीम और जहांगीर तभी से जेल में बंद हैं। अनिल जिंदल ने बताया कि मुकदमे की सुनवाई एडीजे-7 हिमांशु भटनागर के न्यायालय में हुई।
यह था कवाल कांड
27 अगस्त 2013। इस तारीख के बाद जिले का अमन-चैन गायब हो गया था। इसके बाद पंचायतों का दौर चला और एकाएक जनपद दंगे की चपेट में आ गया। बुधवार को सचिन और गौरव की हत्या के इस बहुचर्चित मामले में अदालत के निर्णय पर सभी की निगाहें टिकी रहीं। कवाल गांव के उस चौराहे पर आज सन्नाटा है। इसी चौराहे पर दोनों युवकों की पीट-पीटकर हत्या की गई थी।
फांसी की सजा चाहते हैं
कवाल गांव में मंगलवार के दिन यह अमंगल हुआ था। वारदात को लगभग साढ़े पांच साल होने को हैं। वारदात के बाद से सचिन, गौरव के गांव मलिकपुरा के लोग अब कवाल के उस चौराहे से नहीं गुजरते। गांव के आने-जाने के लिए बाईपास का रास्ता अपना लिया है। लंबे समय चली कानूनी प्रक्रिया के बाद दोनों ही पक्ष न्यायालय के फैसले पर टकटकी लगाए रहे। मलिकपुरा में रहने वाले सचिन के पिता बिशन और मां मुनेश बेटे को याद करते ही रुआंसे हो उठते हैं। वह बेटे के हत्यारों के लिए कम से कम फांसी की सजा चाहते हैं।
दुनिया ही उजड़ गई
बिशन कहते हैं कि हमारी तो दुनिया ही उजड़ चुकी है, अब तो इंसाफ मिलना चाहिए। बेटे के जाने के बाद में बहू अपने बेटे को लेकर मायके चली गई। पोता ही एक सहारा था, वह भी अब उनके पास नहीं है। वहीं, गौरव के पिता रविंद्र सिंह का कहना है कि उनका इकलौता पुत्र ही उनके जीने का सहारा था, जिसे हत्यारों ने निर्ममतापूर्वक मार डाला। वह कहते हैं कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है कि उनके बेटे के हत्यारों को कड़ी सजा मिलेगी। उधर, दूसरे पक्ष के मृतक शाहनवाज के पिता सलीम का कहना है कि सचिन व गौरव अपने परिवार के संग उसके पुत्र की हत्या करने आए थे। हत्या कर भागते समय भीड़ ने दोनों को मार दिया।
कवाल से भड़की थी चिंगारी
कवाल की वारदात के बाद से पुलिस पर एकपक्षीय कार्रवाई के आरोप लगने लगे। बाद में पंचायतों का दौर चला और माहौल बिगड़ता चला गया। सात सितंबर की नंगला मंदौड़ पंचायत से लौटते लोगों पर कई जगह हमले हुए। अगले दिन जिले में हिंसा भड़क उठी। पहली बार गांवों को सांप्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा, जिसमें 65 से अधिक लोगों की जान चली गई। करोड़ों की संपत्तियां जला दी गईं। करीब 40 हजार लोगों ने गांवों से भागकर राहत शिविरों में आसरा लिया।
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