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संवैधानिक अधिकारों की जंग लड़ रहे शिक्षाविद् अरुण

जिन लोगों के मन में दूसरों के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हो उनके उम्र कोई मायने नहीं रखती। वे तमाम अड़चनों को पार करके अपने मकसद में कामयाबी हासिल करके ही दम लेते हैं। यह साबित कर दिखाया कस्बा खतौली के शिक्षाविद् डा. अरुण कुमार गोयल ने।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 11:03 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 11:03 PM (IST)
संवैधानिक अधिकारों की जंग लड़ रहे शिक्षाविद् अरुण
संवैधानिक अधिकारों की जंग लड़ रहे शिक्षाविद् अरुण

मुजफ्फरनगर, अरशद आशू।

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जिन लोगों के मन में दूसरों के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, उनके उम्र कोई मायने नहीं रखती। वे तमाम अड़चनों को पार करके अपने मकसद में कामयाबी हासिल करके ही दम लेते हैं। यह साबित कर दिखाया कस्बा खतौली के शिक्षाविद् डा. अरुण कुमार गोयल ने। मूलभूत समस्याओं लिए आवाज उठाने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने चौ.चरण सिंह विश्वविद्यालय से संबद्ध डिग्री कालेज में प्रवेश के लिए एक प्रॉस्पेक्टस का अधिकार के लिए आंदोलन चलाया और सफलता हासिल की। जेल में बंद रहे एक छात्र को डिग्री कालेज में हथकड़ी लगाकर परीक्षा दिलाने से मुक्ति दिलाई।

रेलवे रोड निवासी पूर्व प्राचार्य डॉ. अरुण कुमार गोयल अध्ययन काल से ही संघर्षशील रहे। उन्होंने कालेजों में छात्रों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। वहीं आम जनता के लिए संवैधानिक अधिकारों के लिए आंदोलन किए। 62 वर्षीय डॉ. अरुण आज भी संवैधानिक अधिकारों के लिए भी संघर्ष करने को तैयार रहते हैं। सन् 1994 में कस्बे में कई दिनों बिजली की अघोषित कटौती होने पर उन्होंने भीड़ को साथ लेकर कोतवाली का घेराव किया था। उसी दिन दूसरे गुट के कुछ लोगों ने बिजली कटौती के विरोध में रास्ता जाम कर प्रदर्शन किया था। भीड़ ने वाहनों में तोड़फोड़ की थी। इस मामले में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें कई दिन जेल मे बिताने पड़े थे। बीच में कई वर्ष वे डिग्री कालेज के छात्र-छात्राओं को पढ़ाने में लगे रहे। वर्ष 2011 में चौ.चरण सिंह विश्वविद्यालय से संबद्ध डिग्री कालेज में प्रवेश के लिए तीन कालेज में पंजीकरण कराए जाते थे। तीनों कालेज में रजिस्ट्रेशन के साथ उन्हें प्रॉस्पेक्टस खरीदने पड़ते थे। करीब दो लाख छात्र-छात्राएं पंजीकरण कराते थे। उन्होंने इसके खिलाफ केके डिग्री कालेज में बेमियादी धरना-प्रदर्शन किया। उनका कहना था छात्र-छात्रा को जिस कालेज में प्रवेश मिल रहा, उसे उसी कालेज से प्रॉस्पेक्टस खरीदने का अधिकार है। छात्र-छात्राओं अन्य कालेज इसके लिए बाध्य नहीं कर सकता। वहीं उन्होंने कालेज के बजाय विश्वविद्यालय द्वारा प्रवेश के लिए मैरिट जारी करने की आवाज उठाई। उन्हें दोनों में सफलता मिली। विवि ने मेरिट जारी करनी शुरू की और एक प्रॉस्पेक्टस खरीदने का आदेश जारी किया। 19 अप्रैल-2013 को बीएससी के एक छात्र को महिला पुलिसकर्मी के साथ छेड़छाड़ के आरोप में जेल में बंद किया गया था। उसने जेल से लाकर परीक्षा दिलाने की गुहार की। एक डिग्री कालेज में हथकड़ी लगाकर परीक्षा दिलाने पर उन्होंने कड़ा विरोध किया। इसपर हथकड़ी खोलकर उसे परीक्षा दिलाई गई।

डा. अरुण गोयल कहते हैं कि वे अभी भी किसी के संवैधानिक अधिकार के लिए हर स्तर पर संघर्ष को तैयार हैं।


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