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कोल्हू-क्रेशर बने किसानों का सहारा

गन्ना क्रेशरों के बंद होने के चलते बुढ़ाना क्षेत्र के किसान चीनी मिलों पर ही निर्भर रह गए थे। अब सरकार द्वारा गुड़ बनाने वाली खांडसारी इकाई का लाइसेंस शुल्क खत्म करने पर कोल्हू एवं क्रेशरों की संख्या बढ़ी है। इससे किसानों को राहत मिली है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 11:17 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 11:17 PM (IST)
कोल्हू-क्रेशर बने किसानों का सहारा
कोल्हू-क्रेशर बने किसानों का सहारा

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। गन्ना क्रेशरों के बंद होने के चलते बुढ़ाना क्षेत्र के किसान चीनी मिलों पर ही निर्भर रह गए थे। अब सरकार द्वारा गुड़ बनाने वाली खांडसारी इकाई का लाइसेंस शुल्क खत्म करने पर कोल्हू एवं क्रेशरों की संख्या बढ़ी है। इससे किसानों को राहत मिली है।

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चीनी मिल में किसानों को गन्ने का भाव 325 रुपये प्रति कुंतल मिल जाता है, लेकिन महीनों तक बकाया भुगतान न मिल पाने के कारण उन्हें बच्चों की फीस, निजी नलकूप बिल, बिजली बिल आदि जमा कराने में और आजीविका चलाने में समस्या का सामना करना पड़ता है। प्रदेश में गन्ने के बढ़ते उत्पादन, सूक्ष्म उद्योग को बढ़ावा देने एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था में खांडसारी उद्योग की महत्ता को देखते हुए सरकार ने गुड़ बनाने वाले क्रेशर और कोल्हुओं को लाइसेंस मुक्त कर दिया है। वर्तमान में तहसील क्षेत्र के गांव राजपुर-छाजपुर, जौला, कमरुद्दीन नगर एवं बहलौलपुर में चार क्रेशर संचालित हैं। इसके अलावा क्षेत्र में लगभग 350 कोल्हू गुड़ व शक्कर बना रहे हैं। क्रेशर संचालक मोनू मलिक ने बताया कि एक दिन में 250 कुंतल गन्ने की पेराई हो जाती है। वहीं कोल्हू पर गुड़ और शक्कर बनाने के लिए एक दिन में 50 से 60 कुंतल तक गन्ने की पेराई हो जाती है। दोनों ही जगहों पर किसानों को 240 से 250 रुपये तक गन्ने का भाव मिल जाता है।

किसान सुरेंद्र सहरावत का कहना है कि चीनी मिल की अपेक्षा क्रेशर व कोल्हू पर भाव तो थोड़ा कम मिलता है, लेकिन समय पर पैसा मिल जाने से इसका इस्तेमाल अगली फसल की बुवाई व घरेलू खर्चों में करने में मदद मिल जाती है।

किसान संदीप उजलायन ने कहा कि क्रेशर पर गन्ना डाल कर भुगतान मिल जाने से खेती की जमीन खाली नही पड़ी रहती। गेहूं की बुवाई समय से शुरू हो जाती है।


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