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मदरसे के साथ एक शिक्षण संस्था भी संदेह के घेरे में

मौलाना कलीम के मदरसे में कक्षा एक से आठवीं तक सरकारी कोर्स के माध्यम से पढ़ाई होती है। इसके साथ बच्चों को उर्दू-अरबी का भी ज्ञान दिलाया जाता है। मौलवीयत और कुरआन-ए-हाफिज की पढ़ाई होती है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 12:05 AM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 12:05 AM (IST)
मदरसे के साथ एक शिक्षण संस्था भी संदेह के घेरे में
मदरसे के साथ एक शिक्षण संस्था भी संदेह के घेरे में

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। मौलाना कलीम के मदरसे में कक्षा एक से आठवीं तक सरकारी कोर्स के माध्यम से पढ़ाई होती है। इसके साथ बच्चों को उर्दू-अरबी का भी ज्ञान दिलाया जाता है। मौलवीयत और कुरआन-ए-हाफिज की पढ़ाई होती है। मदरसे में लाइब्रेरी बनी है, जिनमें देश-विदेश के इस्लामिक विद्वानों द्वारा लिखित पुस्तक हैं। मदरसे के प्रवक्ता का दावा है कि गांव में बनी शिक्षक संस्था से मौलाना व मदरसे का कोई लेना-देना नहीं है। इसके निर्माण के लिए केवल भूमि दी गई है।

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मदरसा जामिया इमाम वलीउल्लाह इस्लामिया के शिक्षक डा. मोहम्मद नईम के मुताबिक मदरसे में सरकार की गाइडलाइन का पालन होता है। मदरसे में कक्षा आठ तक सरकारी किताबों विज्ञान, गणित के साथ तमाम चीजें सिखाई जाती है, ताकि बच्चे दीन के साथ दुनियावी रूप से भी शिक्षा प्राप्त कर सकें। कक्षा आठ के छात्रों को मौलवीयत, हिफ्ज के साथ उर्दू-अरबी का ज्ञान कराया जाता है। उधर, मदरसे की भूमि में एक शिक्षण संस्था भी स्थापति है। यह संस्था भी जांच के दायरे में आ सकती है। संस्था में बच्चों को एक हजार रुपये में प्रवेश दिया जाता है। इसे दक्षिण भारत के कुछ लोग संचालित कर रहे हैं।

सिकंदर लोदी के युग में पड़ी थी तालीम की नींव

डा. मोहम्मद नईम के मुताबिक गांव में दीनी तालीम की नींव सिकदर लोदी के युग में पड़ी थी। तब गांव में मुल्ला युसूफ वसिही आए थे। जिन्होंने एक पेड़ के नीचे बैठकर बच्चों को तालीम से जोड़ना शुरू किया। उसके बाद मस्जिद बनी तो उसमें शिक्षा दी जाने लगी। गांव के मिर्जा दाउद ने अपने मकान को मदरसे के नाम कर दिया। चंदा एकत्र करने के बाद मदरसा बना दिया गया।

मदरसे में आए थे सऊदी से मेहमान

मदरसे में कई साल पहले सऊदी से मेहमान आए थे। जिन्हें मदरसे की पढ़ाई, मेहमाननवाजी का तरीका पसंद आया था। देशभर से अक्सर यहां लोगों के आने-जाने का सिलसिला रहता है।


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