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गाजियाबाद के योगेन्द्र दत्त और जगदीश पंकज 'माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन सम्मान' से सम्मानित Moradabad News

अक्षरा साहित्यिक संस्था की ओर से नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के आवास पर पावस राग एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।

By Narendra KumarEdited By: Published: Tue, 23 Jul 2019 12:12 PM (IST)Updated: Tue, 23 Jul 2019 12:12 PM (IST)
गाजियाबाद के योगेन्द्र दत्त और जगदीश पंकज 'माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन सम्मान' से सम्मानित Moradabad News
गाजियाबाद के योगेन्द्र दत्त और जगदीश पंकज 'माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन सम्मान' से सम्मानित Moradabad News

मुरादाबाद : अक्षरा साहित्यिक संस्था की ओर से नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के आवास पर पावस राग एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के तहत गाजियाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार योगेन्द्र दत्त शर्मा एवं जगदीश पंकज को 'माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन सम्मान' से सम्मानित किया गया। वहीं नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के 81वें जन्मदिवस और रचनाकर्म के 65 वर्ष पूरे होने की सभी ने बधाई दी। इसके बाद कार्यक्रम में काव्य की बयार बही।

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नवगीतकार माहेश्वर तिवारी की रचनाओं से बही काव्य की बयार

नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के रचनाकर्म के 65 वर्ष पूरे होने पर आयोज‍ित काव्य गोष्‍ठी में एक से बढकर एक रचनाओं की ऐसी बयार बही क‍ि श्रोता बागबाग हो गए। सबसे पहले माहेश्‍वर त‍िवारी ने अपनी रचना प्रस्‍तुत कर काव्‍य गोष्‍ठी का शुभारंभ क‍िया। दांतों में दबे हुए चावल सा हमने यह पूरा जीवन जो ज‍िया, जो इबारतों से खाली रहती, होकर रह गए महज हाशिया। माहेश्वर तिवारी की इन पंक्तियों ने काव्य महफिल का शानदार आगाज किया, इसके बाद एक से एक रचनाओं की प्रस्तुति कार्यक्रम में आकर्षण का केन्द्र रही। जगदीश पंकज ने पंक्तियां पेश करते हुए कहा- अंतत: आ ही गए बादल घुमड़कर, श्रवणों श्रंगारिका से केश लहराते हुए...। योगेन्द्र दत्त शर्मा ने कहा- फिर घिर आए काले बादल, फिर नभ से जलधारा फूटी। फिर पांवों के नीचे आकर, कुचली कोई बीरबहूटी...। सावन के आगमन पर वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी ने कहा- मुंह पर पड़कर बूंदों ने बतलाया है, देखो कैसे सावन घिरकर आया है। बौछारों से तन-मन शीतल करने को, डाल-डाल झूलों का मौसम आया है...। निवेदिता सक्सेना ने कहा- कोशिशें सब हुई हरजाई कि तुम याद आए, कसम नहीं मैं निभा पाई कि तुम याद आए...। वहीं डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा- महकी आकाश में चांदनी की गंध, अधरों की देहरी लांघ आए छंद...। योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा- कहीं धरा सूखी रहे, कहीं पड़े बौछार। राजनीति करने लगा, मेघों का व्यवहार तन-मन दोनों के मिटे, सभी ताप-संताप, धरती ने जब से सुना, बूंदों का अलाप...। उनकी इन पंक्तियों को सभी ने सराहा।

इस अवसर पर वरिष्ठ संगीतकार बाल सुंदरी तिवारी, डॉ. मक्खन मुरादाबादी, डॉ. अजय अनुपम, ओंकार सिंह ओंकार, वीरेंद्र सिंह व्रजवासी, डॉ. पूनम बंसल, विशाखा तिवारी, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ. चंद्रभान सिंह यादव, अशोक विश्नोई, मोनिका शर्मा मासूम, डॉ. कृष्ण कुमार नाज, जिया जमीर ने भी कविता पाठ किया, कार्यक्रम में तमाम लोग मौजूद रहे।


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