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हाथों का हुनर छोड़ फावड़ा चलाने में जुटे श्रमिक

लॉकडाउन में रोजी-रोटी की समस्या बढ़ती जा रही है। दूसरे राज्यों से पलायन कर।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 03:31 AM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 03:31 AM (IST)
हाथों का हुनर छोड़ फावड़ा चलाने में जुटे श्रमिक
हाथों का हुनर छोड़ फावड़ा चलाने में जुटे श्रमिक

मुरादाबाद: लॉकडाउन में रोजी-रोटी की समस्या बढ़ती जा रही है। दूसरे राज्यों से पलायन कर आने वाले श्रमिकों के साथ ही स्थानीय श्रमिक भी इन दिनों बेरोजगार हो गए हैं। मुरादाबाद की निर्यात फैक्ट्री और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को भी काम नहीं मिल रहा है। हालांकि जिला प्रशासन ने लॉकडाउन के तृतीय चरण में ही फैक्ट्री और कारखानों के ताले खुलवाने का काम शुरू कर दिया था। लेकिन इन फैक्ट्री में कुछ दिनों तक काम होने के बाद नया आर्डर न होने से ताला लटका दिया गया है। इससे ज्यादातर कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों ने गांव की ओर रुख कर लिया है। अब मनरेगा योजना में फावड़ा चलाकर परिवार का पेट पालने के लिए जुटे हैं।

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मूंढापांडे ब्लाक के नियामतपुर इकटौरिया गांव में इन दिनों सौ श्रमिक तालाब की खुदाई का काम कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर श्रमिक पहले मुरादाबाद निर्यातकों के यहां उत्पादों को सजाने और संवारने का काम करते थे। लेकिन, लॉकडाउन में जैसे ही फैक्ट्रियां बंद हुई तो यह हुनरमंद गांव की ओर लौट गए। वहां मनरेगा जॉब कार्ड की बदौलत तालाब की खुदाई कर रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि अभी फैक्ट्रियों में काम बंद हो गया था,तो ऐसे गांव आना मजबूरी था। मनरेगा योजना में काम मिलने से परिवार का पेट पालने में मदद मिल रही है।

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बोले श्रमिक

शहर में पहले ईट-गारा का काम किया करता था। लेकिन लॉकडाउन के कारण शहर में सभी काम बंद हो गए हैं। ऐसे में मनरेगा योजना में हमें काम मिला है।

मुशाहिद,श्रमिक

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लकड़ी फर्नीचर के कारखाने में काम करता था। लेकिन लॉकडाउन में कारखाना बंद हो गया। ऐसे में गांव मजबूरी में लौट आया। जब कारखाना खुलेगा तो फिर वापस जाऊंगा।

महबूब,श्रमिक

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निर्यात फैक्ट्री में पीतल वस्तुओं में नक्काशी का काम करता था। फैक्ट्री बंद होने से गांव आ गया था। मनरेगा योजना में अभी एक सप्ताह पहले काम मिला है। अब इसी से गुजारा हो रहा है।

प्रेम सिंह,पीतल कारीगर

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शहर में छोले बेचकर परिवार का पेट पालता था। लॉकडाउन में मेरी दुकान बंद करा दी गई। इसके चलते अब मनरेगा योजना में मजदूरी का काम कर रहा हूं।

दिलीप कुमार,श्रमिक

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बर्तन फैक्ट्री में पॉलिश का काम करता था। फैक्ट्री बंद हुई तो परिवार के साथ वापस गांव आ गया था। अब यहीं पर मनरेगा योजना में काम करके परिवार का पेट पाल रहा हूं।

लाल सिंह,पीतल कारीगर

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लोक निर्माण विभाग में सड़क बनाने का काम करता था। लेकिन वहां जब कोई काम नहीं मिला तो गांव आकर ही काम करने लगा।

रूपराम,श्रमिक


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