जेल की सलाखों की पीछे सुई-धागे से उम्मीदों की तुरपन
जिला कारागार में महिला बंदियों से सिलाई कराई जा रही है। महिलाओं ने कपड़े के बैग सिलकर समाज को पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतर संदेश देने का काम शुरू किया है।
मुरादाबाद [रितेश द्विवेदी] जिंदगी की जब आस खत्म होती नजर आती है, तो कहीं से कोई रोशनी एक रास्ता जरूर दिखाती है। इस रोशनी के सहारे से कभी-कभी नया रास्ता भी नजर आ जाता है। कारागार में बंद महिलाओं ने भी कुछ ऐसी ही उम्मीद के साथ एक नई शुरुआत की है। जघन्य अपराधों में बंद महिलाओं ने समाज को पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतर संदेश देने का काम शुरू किया है।
पालीथिन पर प्रतिबंध से मिला रोजगार
शासन ने इसी वर्ष पॉलीथिन बैग के उपयोग पर पूर्ण पाबंदी लगा दी है। पर्यावरण के लिए पॉलीथिन बहुत ही हानिकारक है। ऐसे में एक संस्था के सहयोग से महिला बंदी कपड़े के बेहतरीन बैग बनाने का काम कर रही हैं। जेल प्रशासन के अफसर महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्हें बैग बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनके इस प्रयास की अफसर सराहना भी कर रहे हैं। कपड़े के बैग सिलने से महिलाओं का हुनर भी निखर रहा है। यही बैग उनकी आमदनी का जरिया भी बनता जा रहा है। उनके इस काम से आम लोगों को भी फायदा मिल रहा है।
दस रुपये प्रति बैग की आमदनी
महिला बंदी जो मेहनत कर रही है, उससे उन्हें आमदनी भी हो रही है। महिला बंदियों को संस्था के माध्यम से प्रति बैग 10 रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। जेल प्रशासन की ओर से महिलाओं का मेहनताना उनके खाते में जमा कराया जा रहा है।कारागार में महिला बंदियों की संख्या 60 के करीब है। ऐसे में प्रतिमाह महिला बंदियों की ओर से दो सौ से अधिक बैग सिलने का काम किया जा रहा है। महिला बंदियों को संस्था की ओर से कपड़ा और सुई-धागा भी दिया जाता है।
फांसी की सजा पाने वाली शबनम भी सिल रही बैग
अमरोहा के बावनखेड़ी हत्याकांड की दोषी शबनम मृत्यु दंड की सजा काट रही है। वह भी कारागार में बैग सिलने का काम कर रही है। इससे पहले शबनम कारागार में महिला बंदियों के छोटे बच्चों को पढ़ाने का काम भी काम करती थी। याद रहे कि शबनम को मासूम समेत सात लोगों की हत्या करने के जुर्म में सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक उमेश सिंह बताते हैं कि कारागार में महिला बंदियों को सिलाई का प्रशिक्षण देने के साथ ही कपड़े के बैग बनवाने का काम किया जा रहा है। एक संस्था के सहयोग से इस काम को कराया जा रहा है। महिला बंदियों को मानदेय भी दिया जाता है।- ,