Move to Jagran APP

शगुन के लिफाफे में क्यों देते हैं एक रुपये का सिक्का, क्या है इसकी खास वजह और महत्व

Shagun Envelope किसी भी शादी समारोह या अन्य कार्यक्रम में जब आप जाते हैं तो साथ में गिफ्ट और एक लिफाफा होता है। इस लिफाफे को शगुन का लिफाफा कहते हैं। इसमें हर कोई अपनी हैसियत के हिसाब से 100 250 500 1000 या इससे अधिक रुपये रखता है।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Mon, 16 May 2022 05:10 PM (IST)Updated: Mon, 16 May 2022 05:10 PM (IST)
शगुन के लिफाफे में क्यों देते हैं एक रुपये का सिक्का, क्या है इसकी खास वजह और महत्व
Shagun Envelope : यह एक रुपये का सिक्का क्यों जरूरी है।

मुरादाबाद, जेएनएन। Shagun Envelope : किसी भी शादी समारोह या अन्य कार्यक्रम में जब आप जाते हैं तो साथ में गिफ्ट और एक लिफाफा होता है। इस लिफाफे को शगुन का लिफाफा कहते हैं। इसमें हर कोई अपनी हैसियत के हिसाब से 100, 250, 500, 1000 या इससे भी अधिक रुपये रखता है। लेकिन, इन सबके साथ एक रुपये का सिक्का या नोट जरूर लगा होता है। बाजार में लिफाफे खरीदने जाएं तो उसमें पहले से ही एक रुपये का सिक्का चिपका होता है। अब सवाल यह उठता है कि यह एक रुपये का सिक्का क्यों जरूरी है। शगुन के लिफाफे में इस एक रुपये का क्या महत्व है, तो आइए आचार्य ऋषिकेश शुक्ल के शब्दों में जानते हैं इस एक रुपये की रोचक कहानी।

loksabha election banner

आचार्य ऋषिकेश शुक्ल का कहना है कि कोई शादी हो या जन्मदिन अथवा कोई अन्य कार्यक्रम आपने देखा होगा कि हर कोई शगुन में 101, 251, 501, 1001 रुपये ही देता है। जितने भी पैसे दें, उसमें एक रुपए जोड़कर ही दिया जाता है, लेकिन कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है।  वैसे तो इसके पीछे कोई खास और महत्वपूर्ण तथ्य नहीं है। अधिकतर लोग सिर्फ परंपरा के हिसाब से ही ऐसा करते हैं। यानी लोग हमेशा से करते आ रहे हैं तो अब लोग इसे फॉलो करते हैं। हालांकि, इसमें अगर रिसर्च की जाए तो कई तरह की चीजों से इस परंपरा को जोड़ा जाता है।

शुभ-अशुभ का भी है कनेक्शनः अक्सर लोगों का मानना होता है कि किसी भी रकम में जीरो आने पर वो अंतिम हो जाता है। उसी तरह अगर रिश्ते में जीरो के आधार पर नेग देते हैं तो वो रिश्ता खत्म हो जाता है। ऐसे में एक रुपेय बढ़ाकर दिया जाता है।जीरो के अलावा हर अंक का सबसे कनेक्शन है। जैसे सात का सप्तऋषि, नौ का नौदेवी या नौग्रह आदि से है। इस वजह से जीरो को शुभ नहीं मानकर इसमें एक रुपये जोड़ दिया जाता है। 

कई पीढ़ियों से लोग इसे फॉलो कर रहे हैं लेकिन, अगर इतिहास पर नजर डालें तो समझ आता है कि इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पुराने दौर में किसी शुभ कार्य में 20 आना देने की परंपरा थी, जिसका मतलब है एक रुपये और 25 पैसे यानी सवा रुपये। एक रुपये में 16 आने होते हैं और इसलिए ही 50 पैसे को अठन्नी और 25 पैसे को चवन्नी कहते हैं। यानी उस वक्त से ही कुछ बढ़ाकर देने की परंपरा है। जैसे एक रुपये में कुछ बढ़ाकर दें तो सवा रुपये बन जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.