हत्या के मामले में 13 साल बाद जेल से बाहर आए सपा नेता Usman ul Haq कौन हैं, जानें क्या है उनका सियासी कद
Samajwadi Party leader Usman ul Haq मुरादाबाद के पीपलसाना गांव के हक परिवार का मुरादाबाद देहात विधानसभा पर दबदबा रहा है। एक दौर था जब सियासी धुरंधर खमानी सिंह और रियासत हुसैन के परिवार के बीच इस क्षेत्र की राजनीति घूमती थी।
मुरादाबाद, (मोहसिन पाशा)। Samajwadi Party leader Usman ul Haq : मुरादाबाद के पीपलसाना गांव के हक परिवार का मुरादाबाद देहात विधानसभा पर दबदबा रहा है। एक दौर था जब सियासी धुरंधर खमानी सिंह और रियासत हुसैन के परिवार के बीच इस क्षेत्र की राजनीति घूमती थी।
उस्मान उल हक ने संभाली राजनीतिक विरासत
वर्ष 1985 में देहात विधानसभा सीट से जनता ने रिजवान उल हक को विधायक चुनकर लखनऊ भेजा तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह तीन बार इस क्षेत्र से विधायक रहे। रिजवान-उल हक की मौत के बाद उनके बेटे उस्मान-उल हक ने सियासी विरासत को संभाला। वह एक बार विधायक बने। लेकिन, दो साल बाद ही हत्या के मामले में उन्हें जेल जाना पड़ा।
भाई शमीम भी दो बार बने विधायक
इसके बाद रिजवान-उल हक के भाई शमीम-उल हक को क्षेत्र की जनता ने दो बार विधायक चुना। इस तरह हक परिवार के नेता सात बार मुरादाबाद देहात विधानसभा से विधायक रहे। अब इस परिवार के सियासी उत्तराधिकारी को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। पूर्व विधायक शमीम-उल हक के बेटे कसीम उल हक समाजवादी पार्टी से इस सीट पर दावेदारी कर रहे हैं।
13 साल बाद जेल से हुए रिहा
अब पूर्व विधायक उस्मान-उल हक के जेल से रिहा होने के बाद घर आ गए हैं। इसके बाद से उल हक परिवार के उत्तराधिकारी की चर्चा जोर पकड़ रही है। रिजवान उल हक जनता के नेता रहे। वर्ष 1989 में मुरादाबाद देहात विधानसभा की जनता ने उन्हें दूसरी बार विधायक चुना।
सड़क हादसे में हुई रिजवान उल हक की मौत
वर्ष 1991 में जनता ने तीसरी बार लगातार विधायक बनाया। रिजवान-उल हक की सड़क हादसे में मौत होने के बाद उनके भाई शमीम उल हक ने 2002 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक चुने गए। वर्ष 2007 के चुनाव में शमीम-उल हक ने अपने भाई की राजनीतिक विरासत भतीजे उस्मान -उल हक को सौंप दी थी।
उस्मान बने सबसे कम उम्र के विधायक
उस्मान-उल हक को सपा के टिकट मिला और जनता ने उन्हें सबसे कम उम्र का विधायक बनाकर विधानसभा भेज दिया। 20 सितंबर 2000 को थाना मैनाठेर क्षेत्र में पीपलसाना गांव के ही मोअज्जम ही हत्या में हत्या कर दी गई। मोअज्जम की हक परिवार से रंजिश चल रही थी। इस मामले में उस्मान-उल हक को नामजद किया गया।
विधायक रहते गए जेल, मिली उम्र कैद की सजा
विधायक रहते हुए उन्हें जेल जाना पड़ा और न्यायालय ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। वर्ष 2012 में शमीम-उल हक समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव दूसरी बार विधायक बने। पूर्व विधायक शमीम-उल हक के निधन के बाद बेटे कसीम-उल हक ने सपा से टिकट पर दावेदारी की। 2017 में इस सीट पर सपा से इकराम कुरैशी चुनाव जीते।
चुनाव 2022 में परिवार को सपा से नहीं मिला टिकट
वहीं 2022 में सपा से हाजी नासिर कुरैशी को टिकट मिला। जेल में बंद रहने के बावजूद 2022 में पूर्व विधायक उस्मान ने अपनी बहन को देहात सीट से टिकट दिलवाने के लिए जुगत लगाई। ऐसे में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इस परिवार के किसी सदस्य को उम्मीदवार नहीं बनाया। परिवार में दरार पड़ने पर हक परिवार सियासी रूप से कमजोर होता चला गया।
कसीम उल हक का कहना है कि पूर्व विधायक उस्मान-उल हक मेरे बड़े भाई हैं। हाईकोर्ट से जमानत मिलने पर उनकी रिहाई होने से मुझे बेहद खुशी है। सियासी बातें अलग हैं। मैं हमेशा उनका सम्मान करता हूं और करता रहूंगा। वह परिवार के साथ रहेंगे, इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता।
पूर्व विधायक बोले, सभी को साथ लेकर आगे बढ़ूंगा
पूर्व विधायक उस्मान उल हक ने बताया कि तेरह साल बाद घर लौटा हूं। पुरानी सभी बातें भुलाकर सबको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहता हूं। उन लोगों के परिवार के लोगों से भी मिला हूं, जिनके परिवार के व्यक्ति की हत्या में मुझे सजा हुई है। राजनीतिक दूरी की बात करने वाले तो हमारे अपने हैं। उनसे अब कोई शिकायत नहीं है।