निर्यातकों को दोहरा झटका, ईरान में कारोबार के बाद सुविधाओं पर ब्रेक
मुरादाबाद : ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंधों के बाद मुरादाबाद के निर्यातकों पर इसका साफ असर दि
मुरादाबाद : ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंधों के बाद मुरादाबाद के निर्यातकों पर इसका साफ असर दिखने लगा है। निर्यातकों के जीआर-वन क्लीयर नहीं हो पा रहे हैं। इसके चलते उन्हें बैंकों से मिलने वाले रियलाइजेशन लैटर रोक दिए गए हैं। बिना लैटर के निर्यातकों को सरकार से मिलने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। जीएसटी के चलते पहले से परेशानी की मार झेल रहे निर्यातकों के लिए यह दोहरा झटका है।
मुरादाबाद के पीतल आइटम की यूरोप और अमेरिका में डिमांड कम हुई है। लेकिन सऊदी और ईरान जैसे देश आज भी पीतल के आइटम के प्रमुख खरीददार बने हुए हैं। ईरान में ही मुरादाबाद से हर साल करीब ढाई सौ करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट होता है। अमेरिका के ईरान के साथ संबंध अच्छे नहीं रहे। इसके चलते अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसे में अमेरिका के साथ व्यापार करने वाले देशों को उसकी प्रावधानों को मानना पड़ रहा है। भारत के ईरान के साथ संबंध बहुत अधिक घनिष्ठ तो नहीं, लेकिन अच्छे संबंध रहे हैं। वहीं यूएनओ ने प्रतिबंध हटा दिया था, इसके चलते भारत से ईरान का व्यापारिक रिश्ता बना हुआ है और मुरादाबाद से भी हर साल अच्छा-खासा निर्यात होता है। ईरान को होने वाले निर्यात का भुगतान तो समय से हो रहा है, लेकिन उसके बदले में मिलने वाला जीआर-वन क्लीयरेंस नहीं मिल पा रहा है। इसका नुकसान निर्यातकों को होता है। जीआर वन के बिना बैंक उन्हें रियलाइजेशन लैटर जारी नहीं कर रहे हैं। जब तक यह लैटर कस्टम में जमा नहीं होंगे तब उन्हें सरकार की ओर से निर्यात करने पर मिलने वाले ड्रा बैक जैसी छूट और सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। इन छूट के रूप में निर्यातकों के करोड़ों रुपये फंस गए हैं।
अमेरिका के ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध के कारण जीआर-वन की क्लीय¨रग नहीं होने से निर्यातकों को मिलने वाली छूट नहीं मिल पा रही हैं। इससे सरकार की ओर से मिलने वाली करोड़ों रुपये की छूट फंस गई हैं।
सतपाल, पूर्व सचिव मुरादाबाद हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन
क्या है जीआर-वन
विदेशों में 25 हजार डॉलर से अधिक की शिपिंग निर्यात करने पर जीआर-वन फार्म भरना होता है। सारी डिटेल भरकर यह फार्म कस्टम विभाग को भेजा जाता है। वहां से फार्म को सत्यापित करने के बाद एक कापी निर्यातक को दे दी जाती है। इस सत्यापित कापी को निर्यातक अपने बैंकर को देता है। बैंकर इसके आधार पर उन्हें रियलाइजेशन प्रमाण पत्र देता है। इस पत्र के आधार पर सरकार से मिलने वाली सुविधाएं निर्यातकों को प्राप्त होती हैं।