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अच्छी कमाई को तरस रहा हाथ का हुनर

मुरादाबाद :हस्तशिल्प मुरादाबाद की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। एक समय मुरादाबाद में अधिकांश युवा निर्यात

By JagranEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 01:58 AM (IST)Updated: Fri, 25 May 2018 01:58 AM (IST)
अच्छी कमाई को तरस रहा हाथ का हुनर
अच्छी कमाई को तरस रहा हाथ का हुनर

मुरादाबाद :हस्तशिल्प मुरादाबाद की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। एक समय मुरादाबाद में अधिकांश युवा निर्यात और हस्तशिल्प क्षेत्र में रोजगार तलाशते थे। समय बदलने के साथ अब युवाओं का इस क्षेत्र से मोह भंग हो रहा है। नई पीढ़ी अब इस काम में आना पसंद नहीं कर रही है तो दूसरी ओर पहले से कार्य कर रहे कारीगर, दस्तकार और श्रमिक पलायन कर दूसरे काम-धंधे अपना रहे हैं। इससे हस्तशिल्प क्षेत्र को परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है। साथ ही आने वाले दिनों में पीतल दस्तकारी की परंपरागत दस्तकारी कलाओं के मिटने का भी खतरा सताने लगा है। प्रदेश सरकार की एक जनपद एक उत्पाद योजना की सफलता के लिए दस्तकारों का पलायन रोकना बेहद जरूरी है। आधी रह गई दस्तकारों की सख्या

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दस्तकारों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। पिछली सरकार ने दस्तकारों को सुविधाएं देने और पेंशन योजना शुरू करने के लिए सर्वे कराया था। सर्वे में करीब डेढ़ लाख दस्तकार कागजों में शामिल किए गए। जबकि इससे पहले हुए सर्वे में उनकी संख्या तीन लाख तक बताई जा रही थी। इससे साफ है कि पिछले सात-आठ सालों में हस्तशिल्प के क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या लगातार गिर रही है। सभी की चिंता का विषय है। एक कारण यह भी है कि सरकार रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास करे तो वह परांपरागत उद्योगों से पलायन के कारण पूरे नहीं हो सकते। पिछले कुछ समय से चिंता जताई जा रही है कि अगर यही स्थिति रही तो आने वाले दस सालों में मुरादाबाद की परंपरागत पीतल दस्तकारी खत्म होने के कगार पर पहुंच जाएगी। मेहनत ज्यादा आमदनी कम

हाथ के हुनर से आइटम तैयार करने में जितनी मेहनत लगती है। आमदनी उतनी नहीं होती। दस्तकार अपने बच्चों को अच्छा रहन-सहन और अच्छी शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। इस कला को सीखने में छोटी उम्र में ही बच्चों को लगा दिया जाता है। ऐसे में उनकी पढ़ाई छूट जाती है और वह केवल इसी पर निर्भर होकर रह जाते हैं। वहीं यह जानलेवा काम भी है। इसमें काम करने वाले लोग धातु कणों के शरीर में जाने के कारण कई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। ऐसे में युवा पीढ़ी इस धंधे में आने से कतरा रहा है। वहीं बड़ी संख्या में दस्तकार काम छोड़कर ई-रिक्शा चलाने में काम में जुट गए हैं।

हम भी चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ लिखकर तरक्की करें, लेकिन इतनी कमाई नहीं हो पाती है उन्हें अच्छी शिक्षा दिला सकें। अब बच्चों को इस क्षेत्र में नहीं लाना चाहते।

दिलशाद, दस्तकार दस्तकारों के पलायन के कई कारण है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा बढ़ने से निर्यातकों उत्पादों की कीमत करने का दबाव बढ़ रहा है। वहीं पीतल के दाम आसमान छू रहे हैं, इससे पीतल दस्तकारों की आय गिर रही है। यही कारण है कि पलायन बढ़ रहा है।

शरद बंसल, निर्यातक


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