यूपी सरकार के फैसले ने बढ़ाई परेशानी, कचहरी में सौ रुपये तो तहसील में 120 रुपये का स्टांप पेपर
कोषागार में सौ रुपये के स्टांप पेपर की कमी होने लगी है। इससे वेंडरों की समस्या बढ़ गई है। वहीं सीटीओ का कहना है कि हमारे पास 163 करोड़ 46 लाख रुपये के स्टांप पेपर मौजूद हैं।
मुरादाबाद , जेएनएन। राजस्व बचाने के लिए राज्य सरकार ने स्टांप पेपर की छपाई बंद कराने का निर्णय लिया है। इससे सरकार को सालाना सौ रुपये की बचत होगी। लेकिन स्टांप की छपाई बंद होने से स्टांप विक्रेता परेशान हो गए हैं। वहीं सौ रुपये के स्टांप की कीमत भी ज्यादा वसूली जा रही है। हालांकि कलेक्ट्रेट और कचहरी परिसर में स्टांप तय कीमत पर मिल रहा है,लेकिन तहसीलों में सौ रुपये के स्टांप पर दस से बीस रुपये अधिक लिए जा रहे हैं।
तहसील में बिक्री करने वाले स्टांप विक्रेता कहते हैं कि हमें स्टांप पेपर के लाने के लिए शहर तक जाना पड़ता है,ऐसे में किराया भी लगता है। इसीलिए दस से 20 रुपये स्टांप पेपर में ले लेते हैं। वहीं सौ रुपये के स्टांप पेपर अब ज्यादा मिल भी नहीं रहे हैं।
जनपद में ई-स्टांप बेचने के लिए बीते छह माह से वेंडरों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। मौजूदा समय में जनपद में 91 स्टांप वेंडर अधिकृत है। जो कचहरी से लेकर चारों तहसीलों में स्टांप बेचने का काम करते हैं। मुख्य कोषाधिकारी समीर कुमार सिंह ने बताया कि सरकार ई-स्टांप बेचने के लिए वेंडरों को प्रशिक्षित करेगी। वहीं अभी उनके पास 163 करोड़ 46 लाख रुपये के स्टांप पेपर मौजूद है। ऐसे में फिलहाल स्टांप पेपर की जनपद में कोई कमी नहीं है।
एक वेंडर को सौ रुपये के सौ स्टांप पेपर मिल रहे
कोषागार में छोटे स्टांप पेपर की कमी होने लगी है। स्टांप वेंडर एसोसिएशन के अध्यक्ष नितिन रस्तोगी ने बताया कि उन्हें सौ रुपये के स्टांप पेपर सप्ताह में केवल सौ दिए जा रहे हैं, पहले ऐसा नहीं था। वहीं उन्होंने कहा कि सरकार की नई नीति से स्टांप पेपर विक्रेताओं का रोजगार छिन रहा है। पहले उन्हें एक लाख रुपये का स्टांप पेपर बेचने पर एक हजार रुपये कमीशन मिलता था। लेकिन मौजूदा समय में ई-स्टांप पेपर में उन्हें जीएसटी काटकर केवल 85 रुपये मिल रहे हैं। इससे सभी स्टांप पेपर वेंडर परेशान है। सरकार को ई-स्टांप पेपर में कमीशन की धनराशि बढ़ानी चाहिए। ताकि वह अपने परिवार को पाल सके। उन्होंने कहा कि कचहरी परिसर में सौ रुपये का स्टांप केवल सौ रुपये में दिया जा रहा है। इसमें केवल हमें एक रुपये बचता है। हालांकि, दूसरे लोग स्टांप पेपर की कालाबाजारी कर सकते हैं, लेकिन स्टांप वेंडरों के द्वारा ऐसा नहीं किया जा रहा है।