Move to Jagran APP

सम्भल के भोंपू बिना अफ्रीका में नहीं होती शादी, जानिए क्या है खासियत

सम्भल। अपनी नायाब चीजों के लिए सम्भल विदेश में पहचान बनाए हुए है। सींग का सिंहासन हो या मग, बटन और चश्मा इनकी विदेश में काफी डिमांड है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 10:24 AM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 10:24 AM (IST)
सम्भल के भोंपू बिना अफ्रीका में नहीं होती शादी, जानिए क्या है खासियत
सम्भल के भोंपू बिना अफ्रीका में नहीं होती शादी, जानिए क्या है खासियत

सम्भल (राघवेंद्र शुक्ल। अपनी नायाब चीजों के लिए सम्भल विदेश में पहचान बनाए हुए है। सींग का सिंहासन हो या मग, बटन, चश्मा आदि की विदेश में काफी डिमाड है। अब सींग में नया प्रयोग कर यहा के कारीगरों ने भोंपू बनाना भी तेज कर दिया है। सींग से बने इन भोपू की डिमाड सबसे ज्यादा अफ्रीकन देशों में है। वहा के धार्मिक संस्थानों के अलावा छोटे-मोटे आयोजन में भी लोग इसे खरीदते हैं और बजाते हुए मनोरंजन करते हैं। इतना ही नहीं अफ्रीकन देशों में शादी के दौरान इस भोंपू का इस्तेमाल किया जाता है। वहा के वैवाहिक समारोह में इसके विशेष आयोजन होते हैं। इतना ही नहीं यदि क्रिकेट का मैच वेस्टइंडीज में होता है तो वहा भोंपू बजाकर टीम का उत्साहवर्धन करने वाले सबसे ज्यादा होते हैं। जबकि अफ्रीका के धार्मिक स्थलों में इसे रखा जाता है और इसे बजाकर पूजा की जाती है। यूरोपियन देशों के लोग खरीदते हैं भोंपू दक्षिण अफ्रीका में आज भी तमाम जनजाति ऐसी हैं जो अपने वैवाहिक समारोह में भोंपू का उपयोग करती हैं। इसके अलावा जैसे भारत के गावों में मेले के दौरान बच्चे छोटी या बड़ी सीटी या बाजा खरीदते हैं, उसी प्रकार यूरोपियन कंट्री में लोग भोंपू खरीदते हैं और बजाते हुए मनोरंजन करते हैं। अफ्रीका में बिकने वाले ज्यादातर भोंपू सम्भल से ही जाते हैं, जो सींग के बने होते हैं। एक भोंपू को बनाने में 300 से 600 रुपये की लागत आती है। नेपाल से आता है सींग कारीगरों की मानें तो सबसे ज्यादा सींग नेपाल से आता है। इसके अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से भी सींग यहा लाया जाता है। सींग से भोंपू बनाकर दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, ताइवान, जर्मनी, वेस्टइंडीज, जिम्बाब्वे, कीनिया भेजा जाता है। सप्ताह में तीन हजार भोंपू की होती है सप्लाई एक अनुमान के मुताबिक एक हफ्ते में तीन हजार भोंपू की सप्लाई होती है। सम्भल से भोंपू राजस्थान और कोलकाता पार्टी आकर ले दिल्ली जाती है। वहा से यह हवाई जहाज से अलग अलग देशों में भेजा जाता है। कैसे बनता है भोंपू बड़ी सींग को पहले तो तराशा जाता है। फिर इसे आग पर पकाया जाता है। ताकि शरीर को नुकसान पहुंचने वाले बैक्टीरिया खत्म हो जाएं। इसके साथ ही इसे केमिकल में भी उबाला जाता है। सूखने के बाद इसे साफ किया जाता है। इसके बाद इसमें मशीन से सुराख किया जाता है। अंत में इस पर शाइनिंग का काम होता है। एक भोंपू तैयार करने में कारीगर को दो घटे लगते हैं। इस कार्य में सरायतरीन के 13 से 18 कारीगर लगे हैं। बड़ा बारीक काम है कारीगर राहत अली बताते हैं कि भोंपू बनाने में काफी बारीकी से काम होता है। इसे चमकाना और इसकी आवाज को तेज व बेहतरीन करने के लिए सुराख करने में ही वक्त ज्यादा लगता है। फैजुर्रहमान का कहना है कि यह काफी मेहनत का काम होता है।

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.