आफत के ओलों में दफन हो गया किसानों का खून-पसीना
शहर में गिरे ओलों ने भले ही रोमांचित किया हो, लेकिन गांवों में यह आफत बनकर बरसे। किसानों ने जितना खून पसीना लगाकर फसलों को उगाया वह आफत के ओलो में दफन हो गया। मंजर यह है कि खेतों में लहलहाती सरसों अब जमीं पर गिर गई है।
मुरादाबाद । शहर में गिरे ओलों ने भले ही रोमांचित किया हो, लेकिन गांवों में यह आफत बनकर बरसे। किसानों ने जितना खून पसीना लगाकर फसलों को उगाया वह आफत के ओलो में दफन हो गया। मंजर यह है कि खेतों में लहलहाती सरसों अब जमीं पर गिर गई है। फलियां टूट गई हैं और सब्जियां गलने की कगार पर हैं।मोरा मुस्तकमपुर के किसान करन सिंह की 15 बीघे में लगी सरसों ओला गिरने से बर्बाद हो गई। अब वे सरसों की फट चुकी फलियों को बटोरने में लगे हुए हैं। उन्हें उम्मीद है कि भगवान कोई चमत्कार करेगा और सब ठीक हो जाएगा।
ओलावृष्टि से सरसों की फसल बेकार
यही हाल इस्लामपुर गांव में वीरो का है। उन्होंने 11 हजार रुपये के ठेके पर अपने रिश्तेदारों से खेत पट्टे पर लिया था, सरसों को ओलावृष्टि ने बेकार कर दिया। अब वे कहती हैं कि रुपये तो डूब ही गए अपने बच्चों को कैसे पलेंगे, उन्हें खाने को दूंगी और क्या खाऊंगी।
गेंहूं टूट गया, सब्जियां गलने लगी
ओले की आफत सिर्फ सरसों पर ही नहीं गेहूं और सब्जियों पर भी पड़ी है। क्योंकि ओला इनके लिए सबसे घातक होता है। आलू की फसल तो ओला के चलते बर्बाद हो जाएगी। इस्लामपुर गांव के हरपाल सैनी ने बताया कि ओलों की वजह से गेहूं की फसल टूट गई है और खेतों में पानी भरने से सब्जियां भी गलने की कगार पर है।
55 सौ रुपये प्रति कुंटल का होता फायदा
सरसों लगाने वाले किसानों का कहना है कि अगर सब कुछ अच्छा रहता तो उन्हें 5,500 रुपये प्रति क्विंटल का फायदा होता, लेकिन अब सब कुछ बर्बाद हो चुका है। बारिश और ओला ने तो उनके अरमानों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया है।