ढाई लाख का चश्मा क्वालिटी ऐसी कि अचंभित हो जाएंगे
सम्भल : वेस्ट यूपी ही नहीं दिल्ली की सड़कों से लेकर लखनऊ और पूर्वी यूपी में भी सड़क किनारे आ
सम्भल : वेस्ट यूपी ही नहीं दिल्ली की सड़कों से लेकर लखनऊ और पूर्वी यूपी में भी सड़क किनारे आपको कई डिजाइन के चश्मे मिल जाएंगे। कीमत भी जेब के अनुसार। 99 से लेकर 300 रुपये तक, लेकिन यदि आपको एक चश्मा दिखाया जाए और कीमत बताई जाए ढाई लाख रुपये तो एक बार तो आदमी का दिगाम चकराएगा जरूर। एक दूसरा सवाल भी जेहन में आएगा कि यह चश्मा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, चीन या जापान का होगा। लेकिन हकीकत यह नहीं है। यह चश्मा हिन्दुस्तान के अंदर और एक छोटे से जिले सम्भल में बनता है। हालाकि अभी तक केवल तीन चश्मे के ही आर्डर मिले और सम्भल से यह बनकर यूरोपियन देशों के लिए भेजे जा चुके हैं। इस चश्मे की क्वालिटी भी ऐसी है कि जो शरीर को भा जाता है। अन्य चश्मे जहा आपके दिमाग की नसों को दबा देते हैं। यानी लंबे समय तक यदि आपने पहन लिया तो नुकसान भी हो सकता है लेकिन यह चश्मा स्किन सपोर्टिव है। यानी शरीर को कोई नुकसान नहीं। बाकी चश्मे गिरे तो टूट जाते हैं लेकिन यह चश्मा तब तक आपके पास चलेगा जब तक आप इसे सहेज कर रख सकें। यानी न टूटना, न मुड़ना और न ही कोई अन्य नुकसान।
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हड्डी-सींग के आइटम बनते हैं सम्भल में
हड्डी-सींग के आइटम के लिए विश्व में सम्भल मशहूर है। आज सम्भल के हड्डी-सींग का कारोबार विश्व स्तर पर 500 करोड़ सालाना के टर्नओवर वाला बन चुका है। इसी तकनीक में सम्भल के एक प्रयोग को आज यूरोपियन देशों तक पहचान मिल रही है। सम्भल के कारोबारी मुहम्मद मुकीम ने सींग का चश्मा बनाकर उसे विदेश में पहचान दे दी। आज यह चश्मा फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलाद के अलावा हॉलीवुड की कई फिल्मी हस्तियों के चेहरे की शोभा बढ़ा रही है। रॉ मैटेरियल के रूप से उन्होंने इस चश्मे की सप्लाई कर दी और अब यह कंपनी के टैग के साथ ही विदेशी बाजार में बिक रहा है। इन चश्मों की कई खासियत भी है। इसके अलावा इसके रेट भी सवा लाख रुपये से लेकर 2.5 लाख रुपये तक हैं जो वहन कर पाना ज्यादातर विदेशी बाजार के ही बूते की बात है।
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नई तकनीक से काम कर रहे कारोबारी
प्रदेश सरकार ने भी एक उत्पाद एक जिला में सम्भल में हड्डी-सींग का उत्पादन शामिल किया है। इसके तहत यहा के कारोबारी अपनी तकनीक को विज्ञान और कम्प्यूटर के सहारे नई डिजाइन में ढाल रहे हैं। ऐसा ही चश्मे में किया गया। सींग को पहले सुखाया जाता है। फिर उसे खोखला कर उच्चस्तर पर हाईड्रोजन के सहारे पकाया जाता है, ताकि उसका गलत प्रभाव शरीर पर न पड़े। इसके बाद इसे तराशकर इसे नए डिजाइन देने का काम होता है।
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एक ही सींग से बनता है चश्मा
इस चश्मे की खासियत यह है कि इसे एक ही सींग से बनाया जाता है। यानी, इसमें जोड़ नहीं है और दूसरी सींग का भी इस्तेमाल नहीं होता। इसे बनाने वाले कारोबारी मुहम्मद मुकीम कहते हैं कि यह चश्मा स्किन फ्रेंडली है। इसका कोई भी नकारात्मक प्रभाव चेहरे पर नहीं पड़ता है। अमूमन चश्मा पहनने से नशों पर दबाव बढ़ता है लेकिन इसके साथ ऐसा नहीं है। इस चश्मे को डिमाड पर ही बनाया जाता है। अभी कुछ चश्मों की सप्लाई की गई है। इसका मुख्य बाजार यूरोप में ही है।