कवि सम्मेलन में पहुंचे गीतकार विष्णु सक्सेना, बोले-पढऩे की आदत डालें, कविता खुद समझ आने लगेगी
गीतकार और प्रख्यात कवि डॉ. विष्णु सक्सेना का कहना है कि आज श्रोताओं और मंच के बीच की दूरी बढ़ रही है। नए कवि से लेकर नए श्रोता भी कवि सम्मेलनों में ज्यादा देर नहीं बैठते।
मुरादाबाद। गीतकार और प्रख्यात कवि डॉ. विष्णु सक्सेना का कहना है कि आज श्रोताओं और मंच के बीच की दूरी बढ़ रही है। नए कवि से लेकर नए श्रोता भी कवि सम्मेलनों में ज्यादा देर नहीं बैठते। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें कविता की समझ नहीं है। लोगों की पढऩे की आदत छूट गई है, यही वजह है कि उन्हें साहित्य में रुचि नहीं रह गई। पढऩे की आदत डालेंगे तो कविता खुद-ब-खुद समझ आने लगेगी।
कवि विष्णु सोमवार को मुरादाबाद महोत्सव के तहत आयोजित कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे थे। इस दौरान दैनिक जागरण के साथ हुई बातचीत में उन्होंने अपने अनुभव साझा किए। बताया कि ङ्क्षहदी कविता आज अपनी अस्मिता खोती जा रही है। इसके लिए उन्होंने कान्वेंट स्कूलों को जिम्मेदार ठहराया। बोले, अंग्रेजी स्कूलों में अनिवार्य रूप से ङ्क्षहदी पढ़ाई जानी चाहिए तभी ङ्क्षहदी कविता समृद्ध हो पाएगी।
भीड़ में जगह बनाने के लिए लिखी मुहब्बत
डॉ. विष्णु सक्सेना ने बताया कि जिस समय उन्होंने कविता लिखनी शुरू की थी, उस समय वीर और हास्य रस की कविताएं ही सुनी जाती थीं। गोपाल दास नीजर के बाद शृंगार लिखने वालों के बीच बहुत बड़ी खाई आ गई थी। वह समय ऐसा था जब लोग कुछ नया सुनना चाहते थे, इसलिए मैने मुहब्बत की कविताएं लिखनी शुरू कीं।
संसार के पिता चाहते थे मैं कवि बनूं
डॉ. सक्सेना ने बताया कि हम अक्सर वही करते हैं जो हमारे पिता जी कहते हैं। उनके पिता चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं। इसीलिए मैंने भी डॉक्टरी की पढ़ाई की लेकिन, तीन साल सरकारी नौकरी करने के बाद लगा कि संसार के पिता यह नहीं चाहते हैं। संसार तो चाहता है कि मैं कविताएं लिखूं। इसी कारण नौकरी छोडऩे के बाद मैं कविताएं लिखने लगा।
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