Rohingya in Moradabad : आधार कार्ड भी बने और बैंक खाते खुलवाने की थी तैयारी, जांच में सामने आई सच्चाई
रोहिंग्या के वोट बनाए जाने को लेकर राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है। जिन 16 रोहिंग्या के वोट बनाए गए हैं उनमें से आधे लोग गांव के बाहर टेंट लगाकर रह रहे हैं और आधे लोग दूसरे गांवों में चले गए हैं।
मुरादाबाद, जेएनएन। रोहिंग्या के वोट बनाए जाने को लेकर राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है। जिन 16 रोहिंग्या के वोट बनाए गए हैं उनमें से आधे लोग गांव के बाहर टेंट लगाकर रह रहे हैं और आधे लोग दूसरे गांवों में चले गए हैं। ग्राम प्रधान पर आरोप है कि उन्होंने इन लोगों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं।
भारतीय किसान यूनियन (महाशक्ति) के प्रदेश उपाध्यक्ष मुहम्मद नाजिर पाशा ने बताया कि पिछले दिनों आनलाइन वोटर लिस्ट चेक कर रहे थे, तभी 16 लोगों के नाम पर नजर पड़ी। उन्हाेंने देखा कि इन नाम के लोग तो गांव में रहते ही नहीं हैं। इसके बाद पड़ताल की तो पता चला कि गांव के बाहर टेंट लगाकर रह रहे लोगों के नाम वोटर लिस्ट में जोड़े गए थे। नाजिर पाशा ने बताया कि पूरी तरह पुष्टि होने के बाद भोजपुर में शिकायत की, लेकिन एक दो बार पुलिस वाले पूछने के लिए गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने संपूर्ण समाधान दिवस के साथ जिला प्रशासन, मंडलायुक्त और मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत की। शिकायत करने का नतीजा यह हुआ कि सदर तहसील स्तर पर जांच कराई गई। इसमें बर्मा से आए लोगों के वोटर लिस्ट में नाम जोड़े गए हैं। ग्राम प्रधान शकील अहमद ने बताया कि यह लोग पिछले एक साल से गांव के बाहर रहे हैं। इससे पहले वह भोजपुर कस्बे के नजदीक पांच सालों से रह रहे हैं। काम करते हुए इधर-उधर के गांवों में अपने टेंट लगा लेते हैं और यह बर्मा से आए लोग नहीं है। लॉकडाउन शुरू होने से पांच या छह दिन पहले ये आए थे। लॉकडाउन के दौरान किसी ने इन पर ध्यान नहीं दिया। लॉकडाउन खुलने के साथ ही जैसे-जैसे सरकारी काम शुरू हुए, इन लोगों के एक-एक कर प्रमाण पत्र बनने शुरू हो गए और आधार कार्ड तक बन गए और उसके आधार पर वोटर लिस्ट में नाम जुड़वा दिए गए। अब इनके बैंक में खाता खुलवाने तक के लिए आवेदन दिया गया है, ताकि इन्हें सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं का लाभ मिल सके। मुहम्मद नाजिर पाशा ने बताया कि पिछले दिनों अंबाला पुलिस ने आकर इन लोगों टेंट पर छापा मारा था। लेकिन, जिसे तलाश रहे थे, वह नहीं मिला। इसके बाद से इनमें आधे लोग दूसरे गांवों के बाहर रह रहे हैं।