अयोध्या तक पहुंच गए थे सम्भल के महीपाल सिंह, 25 साल रुपये को नहीं लगाया हाथ
उम्र 84 वर्ष पर आज भी वहीं जज्बा व जोश। भगवान राम व उनकी जन्मस्थली की चर्चा उनको आनंदित करती है। 25 साल से रुपये को हाथ नहीं लगाने वाले चौधरी महीपाल सिंह
सम्भल [राघवेंद्र शुक्ल]। उम्र 84 वर्ष पर आज भी वहीं जज्बा व जोश। भगवान राम व उनकी जन्मस्थली की चर्चा उनको आनंदित करती है। 25 साल से रुपये को हाथ नहीं लगाने वाले चौधरी महीपाल सिंह राम मंदिर आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में शामिल रहे। मुरादाबाद व रामपुर में जेल काटी। किसी तरह अयोध्या तक पहुंच गए थे और पूरे दिन हिरासत में रहने के बाद देर रात छूटे। आज जब राम मंदिर का सपना पूरा हो रहा है तो इनके चेहरे पर चमक है। कहते हैं कि यह एक ऐतिहासिक दिन होगा जब भव्य व विशाल मंदिर में रामलला विराजेंगे। शहर से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम लखौरी निवासी चौधरी महीपाल सिंह अपने हठ के लिए जाने जाते हैं। जो ठाना उसे पूरा किया। राम मंदिर के लिए जब कारसेवा हुई तो सबसे आगे रहे। जोश व जुनून से सराबोर मुरादाबाद के दाऊ दयाल खन्ना, डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त के साथ चौधरी महीपाल सिंह ने पहली बार 1986-1987 के आसपास 12 दिन तक मुरादाबाद में जेल काटी थी। 1990 में रामपुर में कैद रहे। यहां से छूटे तो अयोध्या पहुंच गए। वर्ष 1990 में अयोध्या में यह प्रेमशंकर शर्मा, जयपाल सिंह व्यस्त के साथ फिर गिरफ्तार हो गए। दोपहर में गिरफ्तारी हुई तो रात में छोड़े गए। अगले वर्ष कारसेवक कोठारी बंधुओं की मौत के बाद उनकी अस्थि कलश यात्रा निकाली गई तो इन्होंने यात्रा अपने गांव लखौरी में एक रात के लिए रोकी थी। इसके बाद गांव में शिलापूजन भी किया और आसपास के गांव में कराया भी।
शहीद भगत सिंह की मां से भी लिया आशीर्वाद
चौधरी महीपाल सिंह जुनून के पक्के हैं। एक जनवरी 1973 को वह चंडीगढ़ पहुंच गए। यहां शहीद भगत सिंह से भाई कुलतार सिंह, राजेंद्र सिंह बहन अमरकौर की उपस्थिति में उनकी माता विद्यावती से आशीर्वाद लिया। उस पल को याद करके वह गौरवान्वित हो उठते हैं।
26 साल से पैसे को नहीं छुआ
1994 में अचानक इन्होंने प्रण लिया कि पैसे को हाथ नहीं लगाऊंगा। पैसा ही सारे विवाद की जड़ है। जो प्रण किया, उसपर आज भी कायम है। इन्होंने आज तक न तो अपनी जेब में पैसा रखा और न ही इसे हाथ लगाया। यह बात लखौरी ही नहीं आसपास के दर्जनों गांव के लोग जानते हैं। अब भी वह पैदल ही चलते हैं। किसी ने रास्ते में देखा और बाइक या कार रोककर बैठा लिया तो ठीक, नहीं तो पैदल जाएंगे। निजी बस वाले ने रोका तो वह भी बिना किराया लिए ही उनको चौराहा तक छोड़ेगा। हर कोई इनकी ईमानदारी का कायल है।