रंगबाज इंस्पेक्टर और लाचार सिपाही, निराले हैं साहब के अंदाज Moradabad News
अपने ही मातहतों को पहचान पाने में साहब कैसे गच्चा खा गए। चर्चा यह है कि कहीं बेचारे बड़बोले इंस्पेक्टर साहब एक दिन महकमे का बेड़ागर्क तो नहीं कर देंगे।
मुरादाबाद, (श्रीशचंद्र मिश्र राजन)। कंधे पर थ्री स्टार और थाने की कमान, फिर उनसे बड़ा रंगबाज कौन होगा। साहब का अंदाज न समझ पाने की लापरवाही सिपाही कर बैठा। मुंह में राम बगल में छुरी लेकर बैठे इंस्पेक्टर साहब ने सिपाही के दोस्त की जेब ऐसी कतरी कि वह सिर पर हाथ रखकर बैठ गया। दरअसल बागपत के युवक की कार मुरादाबाद में पकड़ी गई। उस पर शराब पीकर वाहन चलाने का आरोप था। कार चालक ने मदद के लिए अपने उस दोस्त को याद किया, जो बतौर सिपाही मुरादाबाद के एक थाने में तैनात है। सेल्यूट के बाद सिपाही ने इंस्पेक्टर साहब से मदद की गुहार की। इंस्पेक्टर बोले कि कार में तमंचा मिला है। यह सुनते ही सिपाही के पैरों तले जमीन खिसक गई। दो दिन बाद उसी दोस्त ने सिपाही को काल की, तब पता चला कि इंस्पेक्टर साहब ने झूठे केस में फंसाने की धमकी देकर मोटी रकम वसूल की है।
लागा चुनरी में दाग
लागा चुनरी में दाग छिपाऊं कैसे...। वर्ष 1963 में बनी फिल्म दिल ही तो है का यह गाना भला कौन भूल सकता है। इस वक्त पुलिस महकमे में भी दाग सुर्खियों में हैं। दाग का धुलना शायद ही आसान होगा। मुरादाबाद में दो ऐसे थानेदार हैं, जिनकी करतूतों से महकमे की साख पर बदनुमा दाग लगा है। अपराध रोकने में विफल एक इंस्पेक्टर से तो थानेदार की कुर्सी तक छीन ली गई। 24 घंटे के भीतर दोबारा उन्होंने कुर्सी हथिया ली। दूसरे इंस्पेक्टर मुकदमे के अल्पीकरण में फंसा चुके हैं। उनके थाने से एक सिपाही की बाइक तक चोरी हो गई। यह अलग बात है कि 48 घंटे के भीतर उनकी बाइक मझोला में बरामद हुई लेकिन, बाइक चोरी की घटना में थाने की सीसीटीवी कैमरे की फुटेज तक से छेड़छाड़ की। घटना ने खाकी का दामन मैला कर दिया। ऐेसे को अभयदान मिलना ही जिले की सुर्खियों में है।
साहब को कोरोना का खौफ
कोरोना के खौफ का आलम यह है कि जिस कंधे पर आम लोगों को सुरक्षित रखने का भार है, वह भी फूंक- फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं। कोई भी रिस्क लेने को तैयार नहीं। इनमें एक प्रशासनिक अफसर हैं, जिनके इर्द गिर्द सेवाबरदार रहते हैं। 21 फरवरी को साहब ने अपने खिदमदगारों को आदेश दिया। खाना बनाने से लेकर घर की साफ सफाई तक करने वालों पर 24 घंटे साहब के आवास पर ही ठहरेंगे। इतना ही नहीं यह भी कहा कि जब तक महामारी का खौफ खत्म नहीं होता, वह अपने किसी भी करीबी अथवा शुभचिंतक से मिल भी नहीं सकते। उनका परिवार से संपर्क का माध्यम सिर्फ मोबाइल है। अपनी व्यथा व वेदना वह अपनों तक पहुंचा रहे हैं। पर इस तुगलकी फरमान पर कोई अंगुली उठाने की जहमत उठाना नहीं चाहता है।
बड़बोले इंस्पेक्टर हताश और निराश
साहब के शागिर्द रहे इंस्पेक्टर साहब को जब थाने की कमान मिली तो आम लोगों से बातचीत में साधु भाव प्रदर्शित किया। कहते नहीं थकते जैसा साहब का हुक्म वैसा करेंगे। साहब की शान में उनके द्वारा कसे व गढ़े गए कसीदे अमूमन चर्चा में होते थे। फिलहाल इंस्पेक्टर साहब की बड़े साहब से नहीं बन रही। हताशा व निराशा चेहरे पर ही नहीं बल्कि बातचीत से भी झलकती है। एक बार का वाकया साझा करते बोल पड़े कि बताएं भला शराब माफिया के सामने भी अपने थानेदार को कोई डांटता है। जलालत भरी इस नौकरी से मन ऊब चुका है। अब तो जब कोई मांगे कुर्सी तो बगैर मोह छोड़कर चला जाऊंगा। इंस्पेक्टर साहब के इस बोल से एक साथ कई तरह के सवाल उठे। अपने ही मातहतों को पहचान पाने में साहब कैसे गच्चा खा गए। चर्चा यह है कि कहीं बेचारे बड़बोले इंस्पेक्टर साहब एक दिन महकमे का बेड़ागर्क तो नहीं कर देंगे।