रियासत के मुख्यमंत्री आवास में रहते हैं रामपुर के डीएम, आलीशान कोठी की खासियत जान आप भी रह जाएंगे दंग Rampur News
चारों ओर हरियाली रहती है। इस कारण पर्यावरण भी अच्छा रहता है। इसके परिसर में ही यहां काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी आवास बने हैं।
रामपुर (मुस्लेमीन)। आजादी से पहले रामपुर में नवाबों का राज था। पुलिस, फौज, अदालतें सब कुछ उनका अपना था। अपनी मर्जी से फैसले लेते। बड़े-बड़े बाग लगवाते तो आलीशान इमारतें बनवाते। किला, कोठी खासबाग, कोठी बेनजीर, लक्खी बाग और खुसरो बाग भी इन्हीं इमारतों में शामिल हैं। लक्की बाग में एक लाख पौधे तो खासबाग बाग में सवा लाख पौधे लगवाए थे। अंग्रेजी हुकूमत के प्रतिनिधि के लिए राजभवन बनवाया, जो अब नूर महल कहलाता है। इसी में पूर्व सांसद बेगम नूरबानो और उनके पुत्र पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां रहते हैं। राजभवन की तरह ही रियासत के मुख्यमंत्री के लिए भी आलीशान कोठी बनवाई थी। इस कोठी में अब जिलाधिकारी रहते हैं। लखनऊ-दिल्ली हाईवे पर बने मुख्यमंत्री आवास की बनावट भी खास है।
जिलाधिकारी आन्जनेय कमाुर सिंह बताते हैं कि यह कोठी यूरोपीय शैली में बनी है। इसके अंदर नक्काशी भी की गई है। इसमें डायनिंग हाल और ड्राइंग रूम के अलावा पांच बड़े कमरे और हैं। कोठी की बारादरी में तीन ओर से हवा आती है। इसकी दीवारें मोटी हैं और ऊंचाई भी काफी है। इस कारण इसमें गर्मी कम लगती है। कोठी का एरिया करीब 60 बीघा है। इसमें लीची, आम, अमरूद, शहतूत, भद्द, सिरस और आंबला के पेड़ भी लगे हैं।
जिलाधिकारी आन्जनेय कुमार सिंह
नवाबी दौर में रहे तीन मुख्यमंत्री
रामपुर का इतिहास लिखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता शौकत अली खान बताते हैं कि रामपुर में आखिरी नवाब रजा अली खान के दौर में मुख्यमंत्री भी बनाए गए। उनकी रियासत के तीन मुख्यमंत्री रहे। पहले मुख्यमंत्री सर अब्दुस्समद रहे। वह 20 जून 1930 को मुख्यमंत्री बनाए गए थे। इससे पहले वह 31 अगस्त 1900 में रियासत के चीफ सेक्रेट्री बने थे। उनकी बेटी रफत जमानी बेगम की शादी नवाब रजा अली खां के साथ हुई थी। 1930 में नवाब हामिद अली खान की मौत के बाद नवाब रजा अली खां राजगद्दी पर बैठे तो अब्दुस्समद खां को चीफ मिनिस्टर बना दिया गया। चार दिसंबर 1934 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1937 से 1941 तक रियासत जम्मू कश्मीर में होम मिनिस्टर रहे। नवाब हामिद अली खां ने उन्हें इकबाल निशान से सम्मानित किया था। अंग्रेजी सरकार ने भी उन्हे कई बार सम्मानित किया। उनके बेटे साहबजादा याकूब खां पाकिस्तान के विदेश मंत्री भी रह चुके हैं।
मसूदुल हसन दूसरे मुख्यमंत्री
खान बहादुर मसूदुल हसन रामपुर रियासत के दूसरे मुख्यमंत्री बने। वह चार दिसंबर 1934 से एक दिसंबर 1936 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे। वह अमरोहा जिले के बछरायूं के जमीदार मौलवी अहमद हसन के पुत्र थे। उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए और 1909 में बार एट ला होकर स्वदेश लौटे। मुरादाबाद में वकालत भी की। 1919 से 1925 तक मुरादाबाद के म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन रहे। 12 जुलाई 1930 को नवाब रामपुर ने उन्हे रियासत का जुडिशियल मिनिस्टर बनाया। 1934 में नवाब रजा अली खां जब यूरोप गए तो उन्हें काउंसिल आफ स्टेट का प्रेसिडेंट और कार्यवाहक चीफ मिनिस्टर नियुक्त किया। 19 जून 1934 को शहर कोतवाली में बवाल हो गया। भीड़ ने हवालात में बंद लोगों को छुड़ा लिया। भीड़ पर गोली चली, जिसमें एक व्यक्ति मारा गया। शहर में तीन दिन तक कर कर्फ्यू रहा। तब सर अब्दुस्समद खां के सीएम पद से त्यागपत्र देने पर चार दिसंबर 1934 को मसूदुल हसन चीफ मिनिस्टर के पद पर आसीन हुए। एक दिसंबर 1936 को वह रिटायर हो गए।
वशीर जैदी आखिरी सीएम रहे
मसूदुल हसन के बाद कर्नल बशीर हुसैन जैदी रियासत के आखिरी मुख्यमंत्री बने। उनके पिता दिल्ली में दारोगा थे। उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से बैरिस्टर की परीक्षा पास की। 1923 में 1930 तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हेड मास्टर रहे। 10 जुलाई 1930 को नवाब रजा अली खां ने रामपुर हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया। इसके बाद 18 फरवरी 1931 को वे रियासत के हाउसहोल्ड मिस्टर बनाए गए, जबकि एक दिसंबर 1936 को वह चीफ मिनिस्टर बने। द्वितीय विश्व युद्ध में रामपुर रियासत की सेना में आर्नरी कर्नल बनाए गए। तब से कर्नल उनके नाम के साथ जुड़ गया। 1947 में रियासत बनारस और सियासत रामपुर की ओर से वह भारत की संविधान सभा के सदस्य बनाए गए। भारत के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से उनके बहुत करीबी ताअल्लुकात थे। इस कारण वह मुंह मांगी शर्तों पर रामपुर रियासत का केंद्र के साथ विलय कराने में सफल रहे। उनके दौर में रामपुर रियासत का तेजी से विकास हुआ। नवाब रजा अली खां ने उनकी उत्कृष्ट सेवाओं की 22 मई 1949 को गजट में भी सराहना की है। उनके बारे में कहा है कि उन्होंने चीफ मिनिस्टर के पद पर रहते हमारी वफादारी अत्यंत योग्यता और राजनीतिक कौशल के साथ रियासत की शानदार सेवाएं कीं।
तेजी से हुआ विकास
बशीर हुसैन जैदी ने रामपुर के औद्योगिक और शैक्षणिक विकास में अहम भूमिका निभाई। रजा शुगर फैक्ट्री, बुलंद शुगर फैक्ट्री, रामपुर डिस्टलरी, रामपुर मशीन टूल्स एंड इंजीनियरिंग कंपनी, रजा टैक्सटाइल्स, रामपुर इंडस्ट्रीज आदि कारखाने लगे। उनका उद्योग और व्यापार से ऐसा ताल्लुक हुआ कि वे आजादी के बाद कई कंपनियों के डायरेक्टर नियुक्त हुए। आठ साल तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के केंद्रीय बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के सदस्य और मुंबई की मशहूर दवा निर्माता कंपनी सिपला के बोर्ड के अध्यक्ष रहे। रियासत के विलय के बाद में भारत की संविधान सभा जो अस्थायी पार्लियामेंट भी थी, उसके सदस्य की हैसियत से दिल्ली चले गए और 1951 तक उसके सदस्य रहे। 1952 में हरदोई से लोकसभा के सदस्य चुने गए। 18 अक्टूबर 1956 से 18 अक्टूबर 1962 तक अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे। दो बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने 1964 में और कानपुर यूनिवर्सिटी ने उन्हे 1974 में डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने 1972 में पदम विभूषण की उपाधि दी। 29 मार्च 1992 को जैदी विला जामिया नगर दिल्ली में उनका इंतेकाल हुआ और जामिया मिलिया इस्लामिया के कब्रिस्तान में दफन हुए।