यूपी का एक गांव जहां भाई बहनों से नहीं बंधवाते राखी, 250 साल पुराना डर जेहन में बसा
Rakshabandhan 2022 उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले के बेनीपुर चक गांव में सदियों से रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता है। यहां के लोगों को डर है कि कहीं राखी बांधने पर बहनेंं उनका घर- दुआर न मांग लें।
सम्भल, (मुहम्मद गुफरान)। Rakshabandhan 2022 : देश भर में रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का त्योहार परंपरागत ढंग से मनाया जाता है। यह एक ऐसा त्योहार है, जिसे लोग धर्म, जाति व संप्रदाय को किनारे करके धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में एक ऐसा गांव है जहां पर लोग सदियों से रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं।
250 साल पुराने डर ने डाल दी परंपरा
यूपी के सम्भल (Sambhal) जनपद के बेनीपुर चक गांव (Benipur Chak Village) में करीब 250 साल से रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता है। रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाने के पीछे यहां के लोगों का एक डर है। उन्हें डर है कि बहन उससे कहीं ऐसा उपहार न मांग ले, जिससे उन्हें अपना घर छोडऩा पड़ जाए। रक्षाबंधन के दिन इस गांव के हर घर में सन्नाटा पसरा रहता है।
घर-बार छूटने का डर
पूरे देश में रक्षाबंधन पर हर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर बदले में रक्षा का वचन मांगती हैं। स्नेह से भरे भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक पर्व सम्भल जिले के गांव की नई पीढ़ी चाहती है कि वह पुरानी परंपरा को तोड़कर त्योहार को मनाएं लेकिन बस घर छोड़कर जाने का डर सताता है।
राखी बांधने के बदले मांग लिया था गांव
बेनीपुर गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग गोपी बताते हैं कि उनके पूर्वज अलीगढ़ जिले के अतरौली तहसील क्षेत्र के सेमरई गांव के निवासी थे। यहां यादव जमींदार थे। इस गांव में ठाकुर परिवार भी रहता था। ठाकुर के परिवार में कोई बेटा नहीं होने के कारण उनकी बेटियां यादवों के बेटों की कलाई पर राखी बांधती थीं।
एक बार रक्षाबंधन पर ठाकुर की बेटी ने यादवों से राखी के बदले उपहार में गांव की जमींदारी मांग ली। उसी दिन यादव परिवार ने गांव को छोड़ दिया। हालांकि बाद में ठाकुरों ने काफी समझाने का प्रयास किया था लेकिन यादव गांव को छोड़कर सम्भल के बेनीपुर गांव में आकर बस गये।
युवा भी परंपरा के कारण बेबस
बाद में ठाकुर बहन ने बहुत कहा कि यह तो मजाक था लेकिन यादव परिवार ने कहा कि हमारे यहां बहनों से मजाक की परंपरा नहीं है, जो दे दिया, सो दे दिया। वह जमींंदार यादव परिवार सम्भल के बेनीपुर गांव पहुंचकर बस गए। उस दिन के बाद इन यादव परिवारों ने बहनों से राखियां बंधवाना इसलिए छोड़ दिया कि कहीं दोबारा कोई बहन उन्हें अपना घर छोड़ने पर मजबूर न कर दे। इस गांव में तभी से राखी न बंधवाने की परंपरा कायम है।
मेहर व बकिया गोत्र के कुछ यादव महोरा, बरवाली मढ़ैया, कटौनी व अजीमाबाद में भी रहते हैं जो राखी नहीं बंधवाते हैं। वर्तमान समय में बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधना चाहती हैं, भाई भी राखी बंधवाना चाहते हैं लेकिन पूर्वजों की परंपरा के कारण वह बेबस हैं।
जानिए क्या कहते हैं युवा
जबर सिंह का कहना है कि रिश्तेदारों, मित्रोंं व अन्य जगहों पर साथियों के हाथों में राखी देख मन तो करता है कि राखी बंधवाएं लेकिन पूर्वजों की परंपरा कायम रहे, इसलिए राखी नहीं बंधवाते हैं। गोमती का कहना है कि भाभी रक्षाबंधन पर अपने मायके जाकर राखी बांधती हैंं। उन्हें देखकर बहनें भी चाहती हैं कि वह अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर जीवनभर रक्षा का वचन लें, लेकिन घर के बड़े बुजुर्गों की परंपरा बताकर मना कर देते हैं।
गणेश सिंह ने बताया कि सदियों से गांव में रक्षाबंधन पर बहने रखी नहींं बंधती हैं। गांव में यह परम्परा चली आ रही है। बुजुर्ग से लेकर युवा तक रखी नहींं बंधवाते हैं। शकुंतला ने बताया कि गांव में वर्षों से रक्षाबंधन पर्व नहींं मनाया जाता हैं। सैकड़ो साल से गांव में यह परम्परा चली आ रही है।