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Raksha Bandhan 2020 : सम्‍भल के इस गांव में 300 वर्षों से नहीं बांधी जाती राखी, मुंहबोली बहन के लिए बसा दिया था अलग गांव

भाई-बहन के पवित्र रिश्‍ते की आपने कई कहानियां सुनी और पढ़ी होगी लेकिन रक्षाबंधन को लेकर सम्‍भल के एक गांव की अनोखी कहानी आपको सोचने पर मजबूर कर देगी।

By Narendra KumarEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 08:48 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 08:48 AM (IST)
Raksha Bandhan 2020 : सम्‍भल के इस गांव में 300 वर्षों से नहीं बांधी जाती राखी, मुंहबोली बहन के लिए बसा दिया था अलग गांव
Raksha Bandhan 2020 : सम्‍भल के इस गांव में 300 वर्षों से नहीं बांधी जाती राखी, मुंहबोली बहन के लिए बसा दिया था अलग गांव

सम्‍भल, जेएनएन। रक्षा बंधन भाई बहन के प्रेम का त्योहार है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर रक्षा वचन लेती है और दीर्घायु की कामना करती है। इस राखी के त्योहार का बहन भाई सालभर इंतजार करते हैं। संसार में सबसे पवित्र रिश्ता भाई बहन का माना गया है। इसके बाद भी सम्भल तहसील के एक गांव में पिछले सैकड़ों वर्षों से रक्षा बंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है।

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सम्भल आदमपुर मार्ग स्थित गांव बेनीपुर चक में पिछले काफी समय से रक्षा बंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है। बताते है कि इसके पीछे पुरानी परंपरा है। ग्रामीणों ने बताया कि लगभग 300 वर्ष पूर्व जनपद अलीगढ़ के सिमरई में एक जमींदार यादव परिवार रहता था। जमींदार परिवार में कोई बहन नहीं थी। जिसकी वजह से ठाकुर बिरादरी की एक लड़की यादव परिवार के राखी बांधती थी। जिसके बदल में वह उपहार स्वरूप भैंस या कुछ अन्य चीज देते थे। एक वर्ष जब ठाकुर बिरादरी की बहन रखी बंधने आई तो राखी बांधने के बाद यादव जमींदार ने कहा बता बहन क्या लेगी। उस बहन ने कहा कुछ नहीं। आसपास बैठे लोगों ने कहा मांग बहन आज तू जो भी मांगेगी वो दूंगा। उस लड़की ने कहा नहीं दिया तो, तब जमींंदार ने कहा नहीं बहन तू जो भी मांगेगी में वही तुझे दे दूंगा यह मेरा वचन है। उस बहन ने कहा भैया अपनी सब जमींदारी दे दो। यादव भाई को यह उम्मीद नहीं थी कि बहन यह सब मांग लेगी। वचन के मुताबिक भाई ने उसे सब जमींदरी दे दी। लोगों ने बताया कि सच्चाई यह भी है कि उस बहन ने कहा कि भैया मुझे कुछ नहीं चाहिए में मजाक कर रही थी। फिर भी यादव जमींंदार ने कहा कि बहन हमारे यहां बहन से मजाक नहीं किया जाता। यादव भाई ने कहा कोई बात नहीं यह तो सब नियति का खेल था। यादव भाई ने अपनी सारी जमींदारी छोड़कर वहां से चला गया। एक साल तक वह कहीं ना घर बसा सके ना ही उस गांव गए। इसी बीच एक वर्ष का त्योहार खंडित हो गया। उसके बाद उन्होंने सम्भल आदमपुर मार्ग के निकट काफी जगह खाली पड़ी थी। उसी पर उन्होंने मेहनत कर अपना गांव बसा लिया। उसका नाम बेनीपुर चक दिया। उसी दिन से आज तक रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है। लोग आज भी उस परंपरा को निभा रहे हैं।

हमारे गांव में लम्बे समय से रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है। भाई के राखी बांधने का मन हमारा भी बहुत करता है, लेकिन लम्बे समय से चली आ रही इस परंपरा को गांव के सभी लोग निभाते चले आ रहे हैं।

नीरू यादव बेनीपुर चक

हमारे बुजुर्ग लगभग 300 वर्ष पहले अलीगढ़ जनपद के गांव सिमरई में रहते थे। जहां उनकी जमींदारी थी। यादव परिवार में बहन न होने की वजह से ठाकुर बिरादरी की बहन राखी बांधती थी। उसने यादव भाई से पूरी जमींदारी मांग ली। उन्होंने अपना वचन निभाते हुए सारी जमींदारी देकर गांव से चले आए और एक वर्ष की त्योहार बीच में छूट गया। इसी वजह से गांव में रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं।

जीतपाल सिंह यादव बेनीपुर चक


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