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मां को अभिमान तिरंगे की शान में बेटे ने दी जान moradabad news

संतान मां के जिगर का टुकड़ा होती है वह बच्चों को पलकों की छांव में रखती है। वहीं मोरा निवासी रामवीर सिंह की पत्नी सोमवती ने अपने बड़े पुत्र जितेंद्र सिंह जटराना को देश पर कुर्बान

By Narendra KumarEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 08:17 AM (IST)Updated: Sat, 19 Oct 2019 02:10 PM (IST)
मां को अभिमान तिरंगे की शान में बेटे ने दी जान moradabad news
मां को अभिमान तिरंगे की शान में बेटे ने दी जान moradabad news

 मुरादाबाद : संतान मां के जिगर का टुकड़ा होती है, वह बच्चों को पलकों की छांव में रखती है। वहीं मोरा निवासी रामवीर सिंह की पत्नी सोमवती ने अपने बड़े पुत्र जितेंद्र सिंह जटराना को देश पर कुर्बान कर दिया। जाट रेजीमेंट का वीर जवान देश सेवा करते हुए शहीद हो गया। ऐसे जांबाज पुत्र पर मां ने दो टूक कहा कि बेटे ने तिरंगे की शान में शहादत दी, इसका मुझे अभिमान है।

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बात वर्ष 2004-05 की है। 19 वर्षीय जितेंद्र भारतीय सेना में शामिल होने की तैयारी कर रहा था, तभी मेरठ में भर्ती कैंप लगा। इसमें शामिल होने की मंशा लेकर जितेंद्र ने मां व पिता से अनुमति दी। परिजनों ने सहर्ष इजाजत दे दी। कुछ ही दिनों में 16 जाट रेजीमेंट में शामिल होने की सूचना जितेंद्र को मिली। जोश व जज्बे से लबरेज युवक घर छोड़ मां भारती की सेवा में निकल पड़ा।

अगस्त 2011 में जम्मू-कश्मीर में तैनात जितेंद्र ने परिजनों को बताया कि असम में तबादला हुआ है। देश के एक छोर से दूसरे छोर की ओर बढ़ रहे जितेंद्र से मां ने गुजरते वक्त चेहरा दिखाने की गुहार की। पुत्र ने मां की तड़प भांप ली। समयाभाव के बीच चंद घंटों में परिजनों का दीदार कर वह रहद की ओर बढ़ गया। ठीक एक माह बाद सोमवती देवी व उनके परिजनों पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा।

19 सितंबर 2011 को सुबह असम से काल आई। बताया गया कि 18 सितंबर शाम करीब छह बजे सिक्किम की झीमा से साथियों संग वापस असम लौटते समय जितेंद्र सड़क हादसे का शिकार हो गया। खड्ड में फिसले वाहन से साथियों को बाहर निकालते वक्त वह खुद खाई में गिर गया। सिर व शरीर के अन्य हिस्से में गंभीर चोट से जितेंद्र की मौके पर मौत हो गई।

जितेंद्र का शव मोरा गांव पहुंचते ही हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई। हजारों आंखें जितेंद्र की बेवा कविता व उसके गोद में मौजूद तीन वर्षीय महक को देख रो रहीं थीं। इस बीच परिजनों को संभालने की कमान सोमवती देवी ने संभाली।

वह आज भी कहती हैं कि इससे बड़ा सौभाग्य किसी मां के लिए और क्या होगा कि उसका पुत्र अपने खून के हर एक कतरे से दूध का कर्ज चुका कर दुनिया से जुदा हो गया। ऐसे पुत्र की मां होना अपने आप में गर्व की बात है। यह कहते हुए सोमवती फफक कर रो पड़ती हैं।  


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