भुला दी शहादत, सियासत खूब हुई पर सुध किसी ने नहीं ली
जम्मू कश्मीर में तैनाती के दौरान 27 सितंबर वर्ष 2000 को शहीद सीआरपीएफ के जवान महिपाल की शहादत सभी ने भुला दी।
मुरादाबाद (श्रीशचंद्र मिश्र)। सैनिकों की शहादत और राष्ट्रवाद चुनावी मुद्दा है, लेकिन शहादत देने वालों की सुध किसी को नहीं है। जम्मू कश्मीर में तैनाती के दौरान 27 सितंबर वर्ष 2000 को शहीद सीआरपीएफ के जवान महिपाल की शहादत सभी ने भुला दी। उनको न तो शहीद का दर्जा मिला न ही अतिरिक्त लाभ और न आश्रितों को मदद मिली।
खुद लगवाई पति की प्रतिमा
शहीद की प्रतिमा तक गांव में नहीं लगी तो देश सेवा में अपने माथे का सिंदूर मिटाने वाली समाज को नई दिशा देने की राह में आगे बढ़ गई। उमेश देवी ने न सिर्फ अपनी दिली तमन्ना पूरी की, बल्कि खुद ही पति की प्रतिमा को लगवाकर मिसाल कायम की। जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर कांठ तहसील के गोविंदपुर ज्ञानपुर गांव की रहने महिपाल 19 साल पहले शहीद हो गए थे। पत्नी उमेश देवी ने बताया कि 27 सितंबर वर्ष 2000 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स की आतंकवादियों से मुठभेड़ हुई, जिसमें पति लांस नायक महिपाल सिंह शहीद हो गए। शव जब उनके घर पहुंचा, तब हजारों की भीड़ जमा हुई। जनप्रतिनिधि पहुंचे, चट्टान की तरह साथ खड़ा होने और शासकीय सुविधाओं का आश्वासन दिया। चुनाव आए, आश्वासन मिले पर गांव में कोई सुविधा और शहीद के परिजनों को लाभ नहीं मिला। शहीद की विधवा उमेश देवी ने 75 हजार रुपये खर्च कर पति की पत्थर की प्रतिमा बनवाई। इसकी स्थापना गोविंदपुर ज्ञानपुर को छजलैट से जोडऩे वाले मार्ग पर की गई। चुनावी वादों की बात की तो उमेश देवी की आंखें छलक गईं।
परिवार ने ही खर्च किए रुपये
गांव के राजेंद्र सिंह ने बताया कि लांस नायक महिपाल सिंह की मूर्ति उनकी पत्नी उमेश देवी के प्रयास से स्थापित हुई। इसमें परिवार ने ही रुपये खर्च किए। वहीं शिक्षक रामनिवास का कहना है कि पति की मौत के बाद उमेश देवी के कंधे पर दो बेटियों की परवरिश का भार था। पर उन्होंने पति की मूर्ति स्थापित करने का बीड़ा उठाया। सुखवीर सिंह कहते हैं कि हमारी ग्रामसभा लांस नायक महिपाल सिंह व उनकी पत्नी जैसे दंपती की कर्मभूमि रही है। दंपती सदैव प्रेरणा स्रोत रहेंगे। जयकुमार का कहना है कि शहादत का सम्मान हर हाल में होना चाहिए। उमेश देवी उन लोगों के लिए नजीर हैं, जो शहीदों का सम्मान करने में कोताही करती हैं।