27 साल बाद बना सोमवार को नाग पंचमी का योग Moradabad News
मुरादाबाद सोमवार को नागपंचमी है। 27 साल बाद सोमवार को नाग पंचमी का योग बना है।
जागरण संवाददाता। मुरादाबाद : सोमवार को नागपंचमी है। 27 साल बाद सोमवार को नाग पंचमी का योग बना है। यही नहीं इस बार हस्त नक्षत्र सिद्धा योग में नाग पंचमी का परम योग भी है। अब 48 साल बाद यानी 2067 में ऐसा परम योग आएगा। यह (सायान्ह-व्यापिनी) तिथि ही लेनी चाहिए। नागपंचमी की पूजा का मुहूर्त सुबह छह बजे से 7.37 बजे तक रहेगा। इसके बाद सुबह 9.15 से 10.53 बजे तक रहेगा। इस मुहूर्त में दूध से नागों की पूजा की जाएगी।
पूजा की विधि
इस दिन अपने घर के द्वार की दहलीज के दोनों ओर गाय के गोबर से लीप कर कालिक से दोनों और नाग बना कर दूध दूर्वा कुशा गंध पुष्प अक्षत तथा लड्डुओं से नाग देवता का पूजन करें तथा कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा मंत्र का जप किया जाए तो सर्प का विष व्याप्त नहीं होता है यह योग प्रत्येक वर्ष नहीं आता है।
सोमवार को 27 साल बाद नागपंचमी का योग बना है। बहुत ही फल देने वाला नक्षत्र योग भी है। नागों के आठ नाम हैं, जिनकी पूजा करने से परिवार पर आए कष्टों का निवारण होता है।
पंडित हरिदत्त शास्त्री।
अब संवत 2067 में इस शुभ योग का लाभ लेना अतिसुंदर श्रेयकर रहेगा। भगवान शिव का पूजन करना अति लाभदायक है पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करना चाहिए इससे समस्त परिवार के लिए लाभ होता है।
पंडित उमा शंकर जोशी।
नाग पंचमी पर संयोग अरिष्ट योग की शांति के लिए विशेष संयोग माना जाता है। इस दिन शिव का रुद्राभिषेक पूजन और कालसर्प दोष का पूजन का शुभ योग माना जाएगा।
पंडित केदार नाथ मिश्रा।
ये है मान्यता
सावन माह में शुक्ल पक्ष पंचमी को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि श्रावण मास की पंचमी को नाग भगवान ब्रह्मा से मिलने गए थे तथा उस दिन नागों को श्राप से मुक्ति मिली थी। उसी दिन से नागों के पूजन की परंपरा आरंभ हुई। माना जाता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने शेषनाग को अलंकृत किया और पृथ्वी का भार धारण करने पर नाग देवता का लोगों ने पूजन किया, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
ये भी है मान्यता
सावन मास में शुक्ल पक्ष पंचमी को भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को परास्त किया। उन्होंने कालिया नाग के फन पर नृत्य किया और माना जाता है कि तभी से नागों की पूजा की परंपरा चली आ रही है। वासुकि नाग को समुद्र मंथन में रस्सी के रूप में प्रयुक्त किया गया था। भगवान शिव ने नागों को अपने गले में धारण किया और भगवान विष्णु ने शेष शयन किया।
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