सम्भल के लिए मैनपुरी छोड़ दिए थे मुलायम, जानिए क्यों?
मुरादाबाद राघवेंद्र शुक्ल 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की नींव रखने वाले मुलायम सिंह यादव ने पार्टी गठन के महज चार साल के अंदर ही सम्भल में सपा का झंडा बुलंद कर दिया।
मुरादाबाद, राघवेंद्र शुक्ल : लोकसभा चुनाव है तो बातें भी होंगी। कुछ रोचक होगा तो कुछ चुनावी इतिहास। कुछ बातें इतिहास के पन्नों से निकलेंगी तो कुछ लोगों की जुबां से। सभी दलों की अपनी-अपनी कहानी और अपना-अपना इतिहास है। कोई सम्भल में मजबूत है तो कोई कहीं और। किसी को लखनऊ सीट से प्रेम है तो किसी को मुरादाबाद से। इन्हीं भूले बिसरे इतिहास की किताब का एक पन्ना सम्भल सीट भी है। जहां 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की नींव रखने वाले मुलायम सिंह यादव ने पार्टी गठन के महज चार साल के अंदर ही यहां सपा का झंडा बुलंद कर दिया। संयुक्त मोर्चा की सरकार गिरने के बाद जब राजनीतिक उठापटक के बीच मुलायम ने 1998 का चुनाव लड़ा तो मन में दुविधा भी थी और डर भी। लेकिन मुलायम, मैनपुरी भी जीते और सम्भल भी। सम्भल प्रेम किसी से छुपा नहीं रहा। मुलायम ने सम्भल को चुना और मैनपुरी में अपने बेटे अखिलेश को सांसदी की गद्दी देकर राजनीति के ककहरा की शुरुआत भी कर दी।
ऐसे पसंदीदा बनी सीट
सम्भल वैसे तो मुस्लिम व यादव बहुल सीट मानी जाती हैं लेकिन इस सीट पर भाजपा ने हमेशा से न केवल टक्कर दी बल्कि पिछले चुनाव में काबिज हो गई। इन सबके बीच सम्भल की सीट को प्रदेश के पटल पर ले जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने जब पहली बार यहां से सपा का खाता खोला तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ लेकिन विकास के दम पर उन्होंने दुबारा फिर इस सीट से ताल ठोंकी और फिर जीत दर्ज की। वर्ष 1999 के चुनाव में मुलायम के वोट तो खूब छिटके लेकिन ताज मिल गया। वर्ष 2004 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने संसदीय क्षेत्र बदला लेकिन सम्भल से मोह और अपने भाई के प्रेम को भी उजागर कर दिया। 2004 के चुनाव में मुलायम ने भाई राम गोपाल के लिए सीट छोड़ी और उन्हें यहां का सांसद भी बनाया। यानी वर्ष 1998 से लेकर वर्ष 2009 तक इस सीट पर समाजवादी पार्टी की न केवल पकड़ रही बल्कि मुलायम के परिवार की पसंद भी रही।
आजतक नहीं कर पाया कोई बराबरी
यूं कहा जाए तो इटावा, मैनपुरी, कन्नौज से जब मुलायम का कुनबा राजनीति के प्रसार क्षेत्र को बढ़ाने में जुटा तो उनका अगला कदम सम्भल और बदायूं ही रहा। आज यह दोनों सीट इटावा, मैनपुरी और कन्नौज की ही तरह मुलायम परिवार के लिए सेफ जोन बन चुका है।
सम्भल सीट से मुलायम के प्रेम का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि वर्ष 1977 में अस्तित्व में आने के बाद सम्भल में अब तक हुए 11 चुनाव में अब तक किसी भी प्रत्याशी के मुकाबले सबसे अधिक मत पाए। मुलायम ने 1998 के चुनाव में तकरीबन पौने चार लाख वोट इस सीट पर हासिल हुए जो उनका रिकार्ड रहा और जनसंख्या बढऩे व मतदाता बढऩे के बाद भी इस रिकार्ड तक कोई पहुंच नहीं सका है।
यूं ही नहीं है सम्भल से प्रेम
सम्भल जब 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार गिरी और रक्षा मंत्री रहते हुए एक समय तो मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री बनाने की बातें उठने लगी लेकिन देश की राजनीति के दो धूरियों ने जब विरोध किया तो मुलायम अलग-थलग पड़ गए। नतीजतन सरकार गिरी और चुनाव हुए। इस चुनाव में मुलायम ने खुद को और मजबूत करने की ठानी, दो सीटों से 1998 का चुनाव लड़ा और दोनों जीतकर अपनी मजबूती दिखाई। उनके इस विश्वास का एक संबल, सम्भल भी रहा।
याद है मुलायम को हर बातें
तकरीबन ढाई साल पहले एक वैवाहिक समारोह में जब मुलायम सिंह यादव सम्भल आए और असमोली के रास्ते जब शहर में प्रवेश किए तो उन्होंने जो सड़कें बनवाई थी वह उन्हें याद था। गांव याद था यहां तक कि तालाब याद था।
सम्भल में समाजवादी कुनबा
वर्ष 1998
मुलायम सिंह यादव-सपा-376828-जीते
डीपी यादव -बीजेपी-210146-हारे
जीत का अंतर - 1,66,682
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वर्ष 1999
मुलायम सिंह यादव-सपा-259430-जीते
भूपेंद्र सिंह-भाजपा-143596-हारे
जीत का अंतर - 1,15,834
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वर्ष 2004
प्रोफेसर राम गोपाल यादव-सपा-357049-जीते
तरन्नुम अकील-बसपा-158988-हारीं
जीत का अंतर - 1,98,061
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