जानें मुरादाबाद में ऐसा क्या हुआ जो लाखों रुपये की दवाएं एक्सपायर हो गईं, कहां रह गई कमी
Moradabad Expired Medicine Case सरकार की योजनाओं को पलीता लगाने में कोई पीछे नहीं है। अपनी पकड़ हुई तो दूसरों को जिम्मेदार ठहराने की जुगत में मुरादाबाद के औषधि भंडार प्रभारी जुट गए हैं। उन्होंने 2019-20 में दवाओं के स्टाक को चेक ही नहीं किया।
मुरादाबाद, जेएनएन। Moradabad Expired Medicine Case : सरकार की योजनाओं को पलीता लगाने में कोई पीछे नहीं है। अपनी पकड़ हुई तो दूसरों को जिम्मेदार ठहराने की जुगत में मुरादाबाद के औषधि भंडार प्रभारी जुट गए हैं। उन्होंने 2019-20 में दवाओं के स्टाक को चेक ही नहीं किया। जिसका नतीजा यह निकला कि लाखों रुपये की दवाएं पड़े-पड़े एक्सपायर हो गईं। यह दवाएं मरीजों को मिल जाती तो बेहतर होता।
कारपोरेशन के औषधि भंडार में पूरे जिले को दवाओं का वितरण होता है। इसमें सामुदायिक-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दवाएं पहुंवाई जाती हैं। नए सिस्टम के तहत पोर्टल पर ही दवाओं की डिमांड भेजनी पड़ती है। कोरोना काल में मंगवाई गई दवा एक्सपायर हो गई। औषधि भंडार प्रभारी ने दवाओं के स्टाक को देखा तक नहीं है। वह दावा करते घूम रहे हैं कि एक्सपायर दवाओं की जानकारी कारपोरेशन को पहले से ही थी।
यह व्यवस्था सिर्फ मुरादाबाद ही नहीं बल्कि प्रदेश के सभी जिलों में है। सभी जगह यही स्थिति रही है। हालांकि अब दावे करने से कोई फायदा नहीं है। 13,99,691 दवा एक्सपायर हाे गई। औषधि भंडार में व्यवस्था खराब होने से दवाओं का रखरखाव भी ठीक नहीं है। बहरहाल देखने वाली बात यह है कि डिप्टी सीएम एवं स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक लगातार किसी न किसी जिले में छापा मारकर स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर से पर्दा उठा रहे हैं। फिर भी कर्मचारी बात मानने को तैयार नहीं है।
यह है मामलाः लाखों रुपये की दवा स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही की भेंट दवाएं चढ़ गईं। हृदय, उल्टी-दस्त, एंटी बायोटिक, एंटी सेप्टिक लोशन समेत तमाम दवाएं एक्सपायर हो गईं। 29 प्रकार की दवा मंडलीय औषधि भंडार में 13 लाख 99 हजार 691 एक्सपायर हो गई। इन दवाओं की कीमत 16 लाख 89 हजार 266 रुपये 97 पैसे पोर्टल पर दर्ज हैं। यह दवाएं 2019-20 से मंडलीय औषधि भंडार में रखी हैं। उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लायर्स कारपोरेशन की ओर से सभी दवाएं भेजी गई थीं।
क्या कहते हैं अधिकारीः औषधि भंडार प्रभारी डीएस नेगी ने बताया कि कारपोरेशन के पोर्टल पर हर एक चीज की जानकारी रहती है। पोर्टल के हिसाब से ही सबकुछ तय होता है। तीन माह पहले ही हमने कारपोरेशन को रिमाइंडर भेज दिया था। कहां-कितनी दवा जानी है। इसकी भी जानकारी पोर्टल पर दर्ज होती है। वहीं से सूची बनती है। फिर दवा का वितरण होता है।