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Moradabad की एक रामलीला, जहां दशहरा पर नहीं एक दिन बाद होता है रावण दहन

Moradabad Ravana Dahan विजयादशमी यानी दशहरा के दिन देश भर की ज्यादातर रामलीला में रावण वध का मंचन होता है। इसके बाद रावण के पुतले का दहन किया जाता है। लेकिन मुरादाबाद शहर की एक रामलीला ऐसी है जिसमें दशहरा के दिन रावण वध का मंचन नहीं होता।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Thu, 06 Oct 2022 02:32 PM (IST)Updated: Thu, 06 Oct 2022 02:32 PM (IST)
Moradabad की एक रामलीला, जहां दशहरा पर नहीं एक दिन बाद होता है रावण दहन
Moradabad Ravana Dahan : मुरादाबाद के पुराना दसवां घाट रामलीला में मेघनाथ वध का मंचन करते कलाकार। जागरण

मुरादाबाद, जेएनएन। Moradabad Ravana Dahan : विजयादशमी यानी दशहरा के दिन देश भर की ज्यादातर रामलीला में रावण वध का मंचन होता है। इसके बाद बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन किया जाता है। लेकिन मुरादाबाद शहर की एक रामलीला ऐसी है, जिसमें दशहरा के दिन रावण वध का मंचन नहीं होता। न ही इस दिन रावण के पुतले का दहन होता है।

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जानें क्यों दशहरा के अगले दिन होता है रावण दहन

मुरादाबाद में दसवां घाट की रामलीला 75 साल पुरानी है। तब शहर में दो स्थानों पर दशहरा मेले का आयोजन होता था और उसमें रावण के पुतला का दहन होता था। ये थे लाइनपार और दसवां घाट। प्रशासनिक व्यवस्था को देखते हुए प्रशासन ने तय किया था कि दसवां घाट पर एक दिन बाद रावण के पुतले का दहन किया जाएगा।

75 साल पहले जो हुआ, वह अब बन गई परंपरा

उसके बाद से अभी तक दशहरा मेला से अगले दिन रावण के पुतले का दहन होता है। रामलीला समिति के सदस्य विनोद पुष्पक ने बताया कि दसवां घाट पर भी लाइनपार की तरह भीड़ उमड़ती है। इसलिए 75 साल पहले प्रशासनिक व्यवस्था के तहत स्वयं प्रशासन ने दशहरा से एक दिन बाद मेले का आयोजन कराने का निर्णय लिया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है और इसी के तहत हर साल दशहरा के अगले दिन यहां पर रावण का दहन होता है।

प्रशासन की ओर से लिया गया था निर्णय

मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र यादव ने बताया कि अब अपार्टमेंट और कालोनियों में भी रावण दहन होने लगे हैं। लेकिन, पहले दो ही जगह रावण दहन होता था। पुलिस व्यवस्था के चलते दशहरा मेला से एक दिन बाद रावण का पुतला दहन करने का निर्णय प्रशासन ने लिया था।

रावण के अवशेष उठाने की है परंपरा

रावण के पुतले के दहन के बाद वहां मौजूद लोग उसके अवशेष लेने के लिए जुटते हैं। ये एक परंपरा है। मान्यता के अनुसार लोग अवशेष अपने घर ले जाते हैं। दशहरा मेले की भीड़ अवशेष लेने में इतनी तेजी दिखाते हैं कि कई बार हादसे हो जाते हैं।


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