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दवाएं बांट दुआएं बटोर रहीं चलती-फिरती डिस्पेंसरी

जिले के तीन दर्जन गांवों में इलाज आसान हो चला है। इन गांवों में बसनुमा दवाखाना अक्सर देखने को मिल जाएगा।

By Narendra KumarEdited By: Published: Fri, 15 Feb 2019 10:40 AM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 12:15 PM (IST)
दवाएं बांट दुआएं बटोर रहीं चलती-फिरती डिस्पेंसरी
दवाएं बांट दुआएं बटोर रहीं चलती-फिरती डिस्पेंसरी

(अनिल अवस्थी) अमरोहा, जेएनएन: जिले के तीन दर्जन गांवों में इलाज आसान हो चला है। इन गांवों में बसनुमा दवाखाना अक्सर देखने को मिल जाएगा। हर दिन ये हाईटेक मोबाइल डिस्पेंसरी पहुंचती है, जिसमें एमबीबीएस डॉक्टर, प्रशिक्षित स्टाफ के साथ भरपूर दवाएं होती हैं। यही नहीं, इसके साथ एक एंबुलेंस भी होती है। यह सब सरकार की ओर से नहीं बल्कि मां की प्रेरणा और खुद के खर्च से एक शख्स की पहल पर संभव हो सका है। 

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दुआओं ने बेटे को बुलंदियों तक पहुंचाया

मुफ्त दवाओं से निकली दुआओं ने बेटे को सियासी बुलंदियों तक पहुंचाया, लेकिन नीयत साफ थी, इसलिए इरादे नहीं बदले। यही वजह है कि सात साल पहले शुरू हुआ मुफ्त इलाज का सिलसिला अभी तक जारी है। बात हो रही अमरोहा के सांसद चौधरी कंवर सिंह तंवर की। सांसद बनने के बाद निजी खर्च पर हर साल 101 गरीब कन्याओं की शादी कराके वह सियासी गलियारों में छाए हैं, लेकिन पिछले सात साल से वह जिले में गरीब मरीजों को घर बैठे मुफ्त इलाज भी मुहैया करा रहे हैं। 

सुबह में अलग-अलग दिशाओं को निकलतीं हैं मोबाइल डिस्पेंसरी

अमरोहा-दिल्ली हाईवे स्थित उनके फार्म हाउस से प्रतिदिन सुबह छह मोबाइल डिस्पेंसरी अलग-अलग दिशाओं में निकल जाती हैं। आधुनिक सुविधाओं से लैस डिस्पेंसरी में डॉक्टर, नर्स व एक फार्मासिस्ट के अलावा दवाएं रहती हैं। एक डिस्पेंसरी प्रतिदिन पांच गांवों में ओपीडी करती (मरीजों को देखती) है। इस दौरान एक डॉक्टर प्रतिदिन डेढ़ से दो सौ मरीज देखता है। 

प्रधानों को देनी होती है एक दिन पहले सूचना

मोबाइल डिस्पेंसरी का संचालन व्यवस्थित तरीके से होता है। जिन गांवों में मोबाइल डिस्पेंसरी जाती हैं, एक दिन पहले उनके प्रधानों को इसकी सूचना दे दी जाती है। अमरोहा जनपद के अलावा गढ़ में भी प्रतिदिन एक डिस्पेंसरी जाती है। वहीं आपात सेवाओं के लिए भी एक एंबुलेंस हमेशा तैयार रहती है। 

बचपन में देखी गरीबी

सांसद तंवर के मुताबिक बचपन में उन्होंने काफी गरीबी देखी है। अपने मूल गांव दिल्ली के असौला फतेहपुर बेरी में चाय की दुकान तक चलाई। इसके बाद बिल्डिंग मैटेरियल सप्लाई व बाद में जमीन के कारोबार में उतरे। इसमें होने वाली कमाई का एक हिस्सा मां नारायणी देवी गरीबों को दान कर देती थीं। वर्ष 2000 में मां के निधन के बाद उनके नाम पर नारायणी देवी चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया। ट्रस्ट के नाम पर वर्ष 2012 से मोबाइल डिस्पेंसरी के जरिये गरीबों को इलाज दिया जा रहा है। बताया कि वह अपना पूरा वेतन भी प्रधानमंत्री राहत कोष को दान कर देते हैं। 

प्रतिदिन 1000 को मुफ्त इलाज 

सभी छह मोबाइल डिस्पेंसरी में प्रतिदिन औसतन एक हजार मरीजों को देखने के बाद दवाएं दी जाती हैं। जांच के दौरान अगर कोई गंभीर मर्ज निकल आता है तो बेहतर इलाज के लिए जिले से लेकर दिल्ली तक के सरकारी अस्पतालों में पहुंचने का ब्योरा भी समझाया जाता है। इतना ही नहीं ऐसे मरीजों को सरकार से आर्थिक मदद दिलाने के लिए सांसद की संस्तुति वाला लेटर भी दिया जाता है।  


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