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कानपुर में बंद हुईं चमड़ा फैक्ट्रियां, रामपुर में मदरसों पर संकट, जानिए क्या है पूरा मामला Rampur News

अकेले रामपुर जिले में 321 मदरसे पंजीकृत हैं। इनमें कई मदरसे ऐसे हैं जिनमें छात्र हास्टल में रहते हैं। इनके रहने खाने और पढ़ाई का पूरा खर्चा मदरसे उठाते हैं।

By Narendra KumarEdited By: Published: Wed, 14 Aug 2019 01:11 AM (IST)Updated: Wed, 14 Aug 2019 09:12 AM (IST)
कानपुर में बंद हुईं चमड़ा फैक्ट्रियां, रामपुर में मदरसों पर संकट, जानिए क्या है पूरा मामला  Rampur News
कानपुर में बंद हुईं चमड़ा फैक्ट्रियां, रामपुर में मदरसों पर संकट, जानिए क्या है पूरा मामला Rampur News

रामपुर(मुस्लेमीन)। मदरसों की आमदनी का जरिया बनी कुर्बानी के जानवरों की खालों के दाम धड़ाम हो गए हैं। इन खालों को खरीदने के लिए चमड़ा व्यापारी तैयार नहीं है। ज्यादातर लोग कुर्बानी करने के बाद खालें जमीन में दबा रहे हैं। इससे मदरसों के सामने आर्थिक संकट आ गया है क्योंकि, खाल बेचकर और चंदे से ही इनका संचालन होता है। हालांकि कुछ मदरसा संचालक खालें ले रहे हैं। उनका कहना है कि शरई ऐतबार से खालों को दबाना जायज नहीं है, इसलिए वे जमा कर रहे हैं, भले ही उन्हें इन्हें बेचने में फायदा न हो।

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मुरादाबाद मंडल में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है और यहां मदरसे भी बड़ी संख्या में हैं। तमाम मदरसे चंदे और कुर्बानी के जानवरों की खालों से होने वाली आमदनी से चलते रहे हैं। अब इन मदरसों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। इसकी वजह कुर्बानी के जानवरों की खालों की बिक्री न होना है। 

 इस बार नहीं आए व्यापारी

जमीयत उलमा ए ङ्क्षहद के जिला सदर मौलाना मुहम्मद असलम जावेद कासमी कहते हैं कि रामपुर जिले में करीब 14 लाख मुस्लिम आबादी है और तीन लाख परिवार हैं। इनमें से आधे परिवार कुर्बानी करते हैं। करीब 20 हजार जानवरों की कुर्बानी होती है। पहले बकरे की खाल 150 रुपये तक में बिक जाती थी, जबकि बड़े जानवर की खाल सात-आठ सौ रुपये में बिकती थी। कुर्बानी पर तमाम चमड़ा व्यापारी मदरसों से संपर्क करते थे लेकिन, इस बार व्यापारी नहीं आए। मदरसों ने उनसे संपर्क किया तो बताया गया कि कानपुर में चमड़ा फैक्ट्रियां बंद होने के कारण खाल की डिमांड नहीं है। बड़े जानवर की खाल के दाम मात्र 100 रुपये मिलेंगे। बकरे की खाल तो कोई खरीदने को तैयार ही नहीं है। इसलिए लोग इन्हें दबा रहे हैं। मौलाना मदरसा फैजुल उलूम थाना टीन के नाजिम ए आला भी हैं। उनके मदरसे में सात सौ छात्र पढ़ते हैं, जिनमें 200 बाहर के हैं। गांव में अधिकतर लोग खाल को दबा रहे हैं। 

खाल को दबाना नाजायज 

काजी शरआ व जिला मुफ्ती सैयद फैजान मियां कहते हैं कि इस्लाम में खाल को जाया करना नाजायज है। इस तरह खाल को दफन करना भी शरई ऐतबार से जायज नहीं है। खाल को दबाने से उसे कुत्ते या दूसरे जानवर मिट्टी खोदकर निकाल सकते हैं, जिससे बीमारियां फैल सकती हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हमारे मदरसे में जानवरों की खालें इक_ा की जा रही हैं। 

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