Move to Jagran APP

15 साल से नदी की धार से लड़ रहे मुरादाबाद के खेमा Moradabad News

मुरादाबाद के खेमा भी 15 साल से अकेले ही गांवों की दूरी कम करने का प्रयास कर रहे हैं। माझी की तरह वे पहाड़ तो नहीं काट रहे लेकिन नदी की धार से पार निकलते हुए प्रशासन से लड़ रहे है

By Narendra KumarEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 07:59 AM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2019 07:59 AM (IST)
15 साल से नदी की धार से लड़ रहे मुरादाबाद के खेमा Moradabad News
15 साल से नदी की धार से लड़ रहे मुरादाबाद के खेमा Moradabad News

मुरादाबाद (प्रांजुल श्रीवास्तव)।

prime article banner

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर,

जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं।

राहत इंदौरी का यह शेर मुरादाबाद में खेमा के अटल व्यक्तित्व पर सटीक बैठता है। मांझी द माउंटेन मैन की तरह मुरादाबाद के खेमा भी 15 साल से अकेले ही गांवों की दूरी कम करने का प्रयास कर रहे हैं। माझी की तरह वे पहाड़ तो नहीं काट रहे लेकिन, नदी की धार से पार निकलते हुए प्रशासन से लड़ रहे हैं। वह हर बार रामगंगा नदी पर लकड़ी के पुल का निर्माण करते हैैं क्योंकि, बारिश में यह पुल बह जाता है। जलस्तर कम होने पर खेमा फिर से पुल बनाने में जुट जाते हैं। इस पुल से आसपास के गांवों की दूरी महज 500 मीटर रह जाती है। एक वर्ष में आठ से नौ माह तक लकड़ी से अस्थायी पुल से रोजाना सैकड़ों किसान नदी पार करते हैं।

मुरादाबाद से भोजपुर की दूरी सड़क मार्ग से करीब 22 किलोमीटर है। खेमा के प्रयासों से बनने वाले पुल से भोजपुर ही नहीं, कई गांवों की दूरी महज 500 मीटर में तय हो जाती है। हर साल रामगंगा की धार को चीर कर खेमा गांवों के लिए पुल बनाते हैं और बारिश के बाद उफनती नदी उनके खून पसीने से बने पुल को तिनके की तरह उजाड़ देती है। उनकी लड़ाई सिर्फ नदी से नहीं है, वह पिछले 15 साल से नेताओं और प्रशासन के खोखले दावों से भी लड़ रहे हैं। सिविल लाइंस क्षेत्र में जिगर कालोनी से रामगंगा नदी पर बनाए जाने वाले लकड़ी के अस्थायी पुल हर साल किसानों की राह आसान करते हैं। शरीर भले ही बुजुर्ग हो गया पर, अभी तक खेमा के इरादे दृढ़ हैं।

खुद की खेती संभालने के लिए बनाया था पुल

इस बार भी नदी पर बना लकड़ी का अस्थायी पुल बह चुका है। अपनी पत्नी भागवती के साथ खेमा हर रोज नदी के किनारे बैठकर पानी उतरने का इंतजार करते हैं। खेमा बताते हैं कि भोजपुर गांव में उनकी भी खेती है। सड़क से जाने में समय जाया होता था तो, उन्होंने नदी पर लकड़ी का पुल बना दिया।

खुद से जुटाते हैं लकड़ी

खेमा की जिंदगी के करीब 70 साल मेहनत परिश्रम और श्रम में ही गुजरे हैं। उनकी आंखों में उम्मीद है कि जिंदा रहते इस रामगंगा पर स्थायी पुल देख सकेंगे। लकड़ी के पुल से हर रोज सौ से दो सौ लोग गुजरते हैैं। खेतों में जाने वाले ग्रामीण खुद पांच रुपये उन्हें पुल पार करने के दे देते हैैं जबकि, वह कोई पैसा नहीं मांगते हैैं। सबको पता है कि पुल अकेले खेमा ही बनाते हैं, इसलिए मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं। क्षेत्रीय पार्षद रुचि चौधरी कहती हैं कि नगर निगम बोर्ड में इस मुद्दे को रखा जा चुका है। यह शासन स्तर से ही बन सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.