खादी के तिरंगे को लगा रेडीमेड झंडे का ग्रहण moradabad news
भले ही भौगोलिक आजादी लाठी-डंडों और बंदूक की नालों ने दिखाई हो लेकिन मानसिक आजादी तो गांधी के चरखे से ही निकली थी।
मुरादाबाद : भले ही भौगोलिक आजादी लाठी-डंडों और बंदूक की नालों ने दिखाई हो लेकिन मानसिक आजादी तो गांधी के चरखे से ही निकली थी। इसी चरखे से तीन रंग भी निकले थे, ये वही तीन रंग हैं जिन्हें हम सम्मान से ओढ़ते हैं। सीने से लगाते हैं और माथे पर बांधते हैं। मतलब हमारा तिरंगा। लेकिन, आज गांधी के चरखे से निकले इस तिरंगे पर बाजार हावी हो गया है।
साल दर साल गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस पर हावी होते बाजार ने खादी उद्योग की कमर तोड़ दी है। पिछले कुछ साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो इसका असर तिरंगे झंडे पर भी पड़ा है। खादी के तिरंगों की मांग तेजी से घट रही है और रेडीमेट तिरंगे काफी बिक रहे हैं।
खादी गांधी आश्रम के केंद्र व्यवस्थापक शशिकांत चौबे का कहना है कि हर बार गणतंत्र दिवस पर कई झंडे बिकते थे लेकिन, इस बार एक से दो ही झंडे बिके हैं।
महंगा व मजबूती बन रही डिमांड कम होने की वजह
आम तौर पर खादी का तिरंगा सरकारी कार्यालयों व स्कूलों में फहराया जाता है। गांधी आश्रम में कार्यरत संजय मिश्र व अनिरुद्ध मौर्य का कहना है कि इस तिरंगे की आम बाजार से कीमत भी ज्यादा रहती है। इसके अलावा बाजार में आम कपड़े के तिरंगे सस्ते व कम टिकाऊ होने के कारण हर साल बदलने पड़ते हैं। यही कारण है कि इसकी डिमांड में कमी आयी है।
मानकों पर होता है खरा -
खादी का तिरंगा तय मानकों पर खरा होता है। ये झंडे मुरादाबाद में झांसी व मेरठ से मंगाए जाते हैं। केंद्र व्यवस्थापक शशिकांत चौबे की मानें तो खादी का तिरंगा 3:2 के मानक पर बनाया जाता है। आम तौर पर ये 4.5, 3.5 व 2.5 फीट में उपलब्ध रहते हैं।
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ये है खादी के तिरंगों की कीमत
माप दाम
4.5 फीट 1000
3.5 फीट 600
2.5 फीट 250
गाड़ी में लगाने के लिए - 70 से 80 रुपये